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बार-बार शौच के लिए जाना हो सकता है इरिटेबल बॉएल सिंड्रोम, जानें बचाव व इलाज

Frequent defecation can cause irritable bowel syndrome, know its prevention and treatment - Health Tips in Hindi

कभी-कभी हम अपने घर में देखते हैं कि घर का कोई सदस्य बार-बार शौच के लिए जा रहा है। सामान्य स्थिति में इसे हम दस्त लगना कहते हैं। हालांकि बड़ी उम्र के लोगों में जो 70 से ज्यादा के हो जाते हैं, वे सामान्य तौर पर दिन में 5-6 बार शौच के लिए जाते हैं। इसका कारण वह यह बताते हैं कि उनका पेट खराब है या उन्हें कब्ज की शिकायत है जिसके कारण वे एक बार में पूरी तरह से शौच से निवृत्त नहीं हो पाते हैं। नियमित तौर पर दो-तीन बार शौच जाने पर पाचन तंत्र या लीवर में खराबी इसका कारण माना जाता है। वैसे दो बार से ज्यादा बार शौच जाने की आदत को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। दिन में औसतन दो बार शौच जाना सामान्य माना जाता है, लेकिन इससे ज्यादा बार शौच जाना शरीर में किसी बीमारी या पाचन तंत्र की खराबी का संकेत होता है। कई बार खानपान में बदलाव के कारण यह समस्या देखने को मिलती है, लेकिन फिर अपने आप ठीक भी हो जाती है।

दो-तीन बार से ज्यादा शौच जाने की समस्या कई कारणों से हो सकती है। आयुर्वेद चिकित्सकों के मुताबिक इस समस्या को फ्रीक्वेंट बॉवेल मूवमेंट कहते हैं। हर व्यक्ति में इस समस्या के अलग-अलग कारण हो सकते हैं। इसके अलावा बड़ी आंत में किसी तरह का इन्फेक्शन या समस्या भी इसका कारण हो सकता है। बार-बार शौच जाना इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम का लक्षण भी हो सकता है। इरिटेबल बॉएल सिंड्रोम एक ऐसा विकार है जिसमें बड़ी आंत प्रभावित होती है। इस रोग में मरीजों की आंत की बनावट में कोई बदलाव नहीं होता है, इसलिए कई बार इसे सिर्फ रोगी का वहम ही मान लिया जाता है। लेकिन आँतों की बनावट में कोई बदलाव ना आने के बावजूद भी रोगी को कब्ज या बार-बार दस्त लगना, पेट में दर्द, गैस जैसी समस्याएं होती हैं।

इरिटेबल बॉएल सिंड्रोम रोगियों की शिकायतें

—खाना खाने के बाद शौच के लिए जाना

—घर से बाहर निकलने से पहले शौच के लिए जाना

—चाय या दूध पीने के बाद शौच के लिए जाना

—पेट साफ नहीं होने पर बार-बार शौच के लिए जाना।

दिन में दो से तीन बार से ज्यादा शौच जाना इन समस्याओं का लक्षण हो सकता है—

—इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम की समस्या

—आंत में सूजन या इन्फेक्शन की समस्या

—हाइपरथायरायडिज्म के कारण

—अल्सरेटिव कोलाइटिस के कारण

—जीवाणु या विषाणुओं का संक्रमण

—पित्ताशय की थैली की समस्या

—एंटीबायोटिक दवाओं का बहुत ज्यादा उपयोग

रोग के लक्षण

कब्ज या बार बार दस्त लगना— कई बार कुछ खाते ही शौच के लिए जाना पड़ता है। बहुत से रोगियों को दिन में 7 या 8 बार या ज्यादा बार भी शौच के लिए जाना पड़ता है। जबकि कई बार अपने आप ही कब्ज हो जाता है।

—पेट में दर्द या एँठन।

—बहुत ज्यादा गैस बनना।

—पेट फूलना या अफारा होना।

—मल के साथ चिकना कफ जैसा पदार्थ या आंव आना।

—एक बार में पेट साफ ना हो पाना जिससे बार-बार शौचालय जाने की जरूरत महसूस होना।

आईबीएस का कोई एक कारण नहीं माना गया है। बल्कि कई कारण मिलकर इस रोग के होने का कारण बनते हैं –

विशेष खाद्य पदार्थों के सेवन से लक्षणों का बढ़ जाना—बहुत से लोगों को चोकलेट, एल्कोहल, गोभी, डेयरी उत्पाद, दूध, तले भुने मसालेदार पदार्थों एवं गेहूं से लक्षण बढ़ जाते हैं।

तनाव—आईबीएस के होने में तनाव पूर्ण माहौल का भी अहम रोल हौता है। जिससे आईबीएस या ग्रहणी रोग के लक्षण बढ़ जाते हैं।

आनुवंशिकता—जिन लोगों के परिवार में माता-पिता आदि को यह तकलीफ होती है उनके बच्चों को यह समस्या होने की ज्यादा सम्भावना हो जाती है।

रोग से बचाव

फाइबर लें – खान पान में धीरे-धीरे रेशे की मात्रा बढ़ाने से लक्षणों में बहुत आराम मिलता है। फाइबर चोकर युक्त आटा, हरी सब्जियों एवं फलों में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।

अहितकर खान-पान से बचें – ऐसा खान पान जिसमें आईबीएस के लक्षण बढ़ते हों उनसे बचें। यह हर व्यक्ति के अनुसार अलग अलग हो सकते हैं। जैसे- दूध, चॉकलेट, पेय पदार्थ, कॉफ़ी, शराब आदि। यदि तकलीफ ज्यादा हो तो गोभी, आलू, नींबू, तले भुने खाद्य पदार्थो से बचें।

खान-पान में नियमितता रखें – नियमित समय पर खाना खाने की आदत डालें। एक बार में ज्यादा न खाकर थोड़ा थोड़ा कई बार में लें। खान पान में दही, छाछ आदि ज्यादा शामिल करें।

व्यायाम, योगाभ्यास, भ्रमण जरूर करें – नियमित रूप से भ्रमण, योगा, व्यायाम करें, इससे तनाव का स्तर घटता है और खाने का सही से पाचन होता है।

आयुर्वेदिक उपचार- आयुर्वेद में आईबीएस को ग्रहणी या संग्रहणी रोग के नाम से जाना जाता है। आयुर्वेद में ग्रहणी के वातज, पितज, कफज, सन्निपातज जैसे प्रकार बताये गए हैं तथा ग्रहणी रोग के कारणों, लक्षणों और चिकित्सा के बारे में विस्तार से वर्णन किया गया है।

आयुर्वेद की कई जड़ी बूटियाँ जैसे—बिल्व, कुटज, चित्रक, हरीतकी, आंवला, दाड़िम, पिप्पली, पंचकोल, शुण्ठी एवं पंचामृत पर्पटी, रस पर्पटी, स्वर्ण पर्पटी, गंगाधर चूर्ण, शंख भष्म—जैसी औषधियाँ आईबीएस रोग में बहुत ही फायदेमंद रहती हैं। पर्पटी कल्प ग्रहणी रोग में आयुर्वेद की विशेष चिकित्सा बताई गई है। इन्हें आयुर्वेद विशेषज्ञ की सलाह से ही लिया जाता है।

छाछ – एक गिलास ताज़ा छाछ में आधी चम्मच भुना हुआ जीरा पाउडर एवं इतना ही सूखा पिसा हुआ पुदीना पाउडर मिलाकर पीना बहुत ही लाभकारी है। ग्रहणी यानी आईबीएस रोग में छाछ को अमृत समान गुणकारी माना गया है। इसका नियमित रूप से सेवन करें।

ईसबगोल– दस्त लगने पर दही के साथ एवं कब्ज होने पर गरम दूध के साथ ईसबगोल की भूसी 1-2 चम्मच मात्रा में लेना आईबीएस के लक्षणों में बहुत ही फायदेमंद साबित होता है।

बिल्व एवं त्रिफला पाउडर – दस्त ज्यादा लगने पर बिल्व एवं कब्ज की स्थिति में त्रिफला उपयोगी साबित होते हैं।

नोट—दी गई सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। KhasKhabar.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।

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