सर्व विघ्नों के हर्ता और ऋद्धि-सिद्धि बुद्धि के प्रदाता
गणपति का चाहे कोई सत्कर्मानुष्ठान हो या किसी देवता की आराधना का प्रारम्भ
या किसी भी उत्कृष्ट या साधारण लौकिक कार्य सभी में सर्वप्रथम इन्हींक का
स्मरण, विधिवत् अर्चन एवं वन्दन किया जाता हैं। स्कन्दपुराण के अनुसार मां
पार्वती ने अपने शरीर की उबटन की बत्तियों से एक शिशु बनाकर उसमें प्राणों
का संचार कर गण के रुप में उन्हें द्वार पर बैठा दिया। भगवान शिव को द्वार
के अन्दर प्रवेश नहीं करने देने पर गण और शिव में युद्ध हुआ। शिवजी ने गण
का सिर काट कर द्वार के अन्दर प्रवेश किया। पार्वती ने गण को पुनः जीवित
करने के लिए शिवजी से कहा। शिवजी ने एक हाथी के शिशु के सिर को गणेश जी के
मस्तक पर जोड़कर पुनः जीवित कर पुत्र रुप में स्वीकार किया। इससे ये गजानंद
कहलाए। तंत्र शास्त्र में निम्न गणेश मंत्रों का जप अभिष्ट फल प्राप्ति
में सहायक होता है-
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(1) उच्छिष्ट गणपति मंत्र
मंत्र महोदधि अनुसार मंत्र इस प्रकार हैः-
हस्तिपिशाचिलिखे स्वाहा।
विनियोग,
ऋषियादिन्यास, करन्यास, ह्मदयादिन्यास, ध्यान पश्चारत सोने चांदी आदि से
निर्मित उच्छिष्ट गणपति यंत्र या सफेद आक या लाल चन्दन से निर्मित अंगूठे
के बराबर उच्छिष्ट गणपति की आकृति बनाकर रात्रि को भेाजन के पष्चात् लाल
वस्त्र धारणकर झूठे मुख से अर्थात् निवेदित मोदक, गुड़, खीर या पान आदि
खाते हुए कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी से शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तक उपर्युक्त
मंत्र के सोलह हजार जप करने से सम्पत्ति, यष, रोजगार एवं वाक्सिद्वि की
प्राप्ति होती है। उपर्युक्त मंत्र का पांच हजार हवन करने से श्रेष्ठ पत्नी
की प्राप्ति, दस हजार हवन करने से उत्तम रोजगार एवं रूद्रयामल तंत्र
अनुसार प्रतिदिन एक हजार जप करने से कार्यों में आ रहे विघ्न दूर हो कर
कठिनतम कार्य भी पूर्ण होते हैं। उपर्युक्त मंत्र या यंत्र को गले में धारण
करने से सभी कार्यों में विजय एवं आकस्मिक संकटों से रक्षा होती है।
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