हिन्दू धर्म में भगवान शिव को त्रिदेवों में गिना जाता है। भगवान शिव को
कोई रूद्र तो कोई भोलेनाथ के नाम से पुकारता है। माना जाता है कि भगवान शिव
भक्त की भक्ति मात्र से प्रसन्न हो जाते हैं। भगवान शिव की पूजा में
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भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए भक्त जल और बेलपत्र से शिव जी का अभिषेक
करते हैं। इसके पीछे एक ब़डा कारण है जिसका उल्लेख पुराणों में किया गया
है। शिव पुराण में उल्लेख मिलता है कि सागर मंथन के समय जब हालाहल नाम का
विष निकलने लगा तब विष के प्रभाव से सभी देवता एवं जीव-जंतु व्याकुल होने
लगे। ऎसे समय में भगवान शिव ने विष को अपनी अंजुली में लेकर पी लिया।
विष के प्रभाव से स्वयं को बचाने के लिए शिव जी ने इसे अपनी कंठ में रख
लिया इससे शिव जी का कंठ नीला पड गया और शिव जी नीलकंठ कहलाने लगे। लेकिन
विष के प्रभाव से शिव जी का मस्तिष्क गर्म हो गया। ऎसे समय में देवताओं ने
शिव जी के मस्तिष्क पर जल उडलेना शुरू किया जिससे मस्तिष्क की गर्मी कम
हुई।
बेल के पत्तों की तासीर भी ठंढी होती है इसलिए शिव जी को बेलपत्र भी चढाया
गया। इसी समय से शिव जी की पूजा जल और बेलपत्र से शुरू हो गयी। बेलपत्र और
जल से शिव जी का मस्तिष्क शीतल रहता और उन्हें शांति मिलती है। इसलिए
बेलपत्र और जल से पूजा करने वाले पर शिव जी प्रसन्न होते हैं।
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