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भीमसेनी एकादशी के नाम से जानी जाती है निर्जला एकादशी, मिलता है 24 एकादशी व्रतों का फल

Nirjala Ekadashi is known as Bhimseni Ekadashi, one gets the result of 24 Ekadashi fasts - Puja Path in Hindi

ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की ग्यारहवीं तिथि को निर्जला एकादशी व्रत रखा जाता है। यह व्रत आमतौर पर मई या जून महीने में रखा जाता है। हिंदू धर्म में इस व्रत का विशेष महत्व है, साथ ही निर्जला एकादशी व्रत की गणना कठोर व्रत में की जाती है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस दिन साधक बिना अन्न और जल ग्रहण किए एकादशी व्रत का पालन करते हैं। ज्योतिष पंचांग के अनुसार, इस वर्ष निर्जला एकादशी व्रत आज यानी 31 में 2023, गुरुवार के दिन रखा जा रहा है। इस व्रत को भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। निर्जला एकादशी का व्रत महाभारत काल में भीम ने किया था। जिससे उन्हें ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्ति मिली थी। यही वजह है कि इसे भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं।

महाभारत, स्कंद और पद्म पुराण के मुताबिक इस व्रत के दौरान सूर्योदय से लेकर अगले दिन के सूर्योदय तक पानी नहीं पिया जाता। इस कारण इसे निर्जला एकादशी कहते हैं। ग्रंथों का कहना है कि इस व्रत को विधि-विधान से करने वालों की उम्र बढ़ती है और मोक्ष मिलता है। इस व्रत में सूर्योदय से पहले उठना जरूरी होता है। फिर तीर्थ स्नान करने का विधान है। ऐसा न कर पाएं तो पानी में गंगाजल की कुछ बूंदे और एक चुटकी तिल मिलाकर नहाते हैं। फिर व्रत करने का संकल्प लिया जाता है। इसके बाद उगते हुए सूरज को जल चढ़ाकर दिन की शुरुआत होती है। एकादशी तिथि के सूर्योदय से अगले दिन द्वादशी तिथि के सूर्योदय तक जल नहीं पिया जाता और भोजन भी नहीं किया जाता है। क्यों कहा जाता है भीमसेनी एकादशी निर्जला एकादशी को पांडव एकादशी या भीमसेनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। पौराणिक किंवदंतियों के अनुसार, पांडवों में सबसे बलशाली भीमसेन स्वादिष्ट भोजन के बहुत बड़े शौकीन
थे। उनसे अपनी भूख बर्दाश्त नहीं होती थी, इसी कारण से वह साल में एक भी एकादशी व्रत नहीं रख पाते थे। वहीं पांडवों में भीम के अलावा सभी भाई और द्रौपदी साल के सभी एकादशी व्रत श्रद्धा भाव से किया करते थे। एक समय ऐसा आया, जब भीम अपनी इस लाचारी और कमजोरी से परेशान हो गए। उन्हें यह लगता था कि वह एकादशी व्रत न रखकर भगवान विष्णु का अपमान कर रहे हैं। इस परेशानी की युक्ति ढूंढने के लिए वह महर्षि व्यास के पास पहुंच गए। तब महर्षि व्यास ने उन्हें कहा कि वह साल में एक बार निर्जला एकादशी व्रत जरूर करें। साथी यह भी कहा कि निर्जला एकादशी व्रत रखने से व्यक्ति को सभी 24 एकादशी व्रतों का फल प्राप्त होता है। यही कारण है कि निर्जला एकादशी व्रत को भीमसेनी एकादशी व्रत के नाम से जाना जाता है। निर्जला एकादशी व्रत 2023 शुभ मुहूर्त हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का शुभारंभ कल अर्थात 30 मई को दोपहर 01 बजकर 07 मिनट पर हो गया है। वहीं इस तिथि का समापन 31 मई 2023 दोपहर 01 बजकर 45 मिनट पर हो जाएगा। ऐसे में निर्जला एकादशी व्रत आज यानी 31 मई 2023, बुधवार के दिन रखा जा रहा है। इसके साथ आज सुबह 05 बजकर 24 मिनट से 06 बजे के बीच सर्वार्थ सिद्धि योग और रवि योग का निर्माण हो रहा है। बता दें कि एकादशी व्रत का पारण 01 जून को सुबह 05 बजकर 24 मिनट से सुबह 08 बजकर 10 मिनट के बीच किया जा सकेगा। जल कलश और तिल दान से अश्वमेध यज्ञ का पुण्य
निर्जला एकादशी पर जरुरतमंद लोगों को जल दान के साथ ही अन्न, कपड़े, आसन, जूता, छाता, पंखा और फलों का दान करना चाहिए। इस दिन जल से भरे कलश और तिल का दान करने से अश्वमेध यज्ञ करने जितना पुण्य मिलता है। जिससे पाप खत्म हो जाते हैं। इस दान से व्रत करने वाले के पितर भी तृप्त हो जाते हैं। इस व्रत से अन्य एकादशियों पर अन्न खाने का दोष भी खत्म हो जाता है और हर एकादशी व्रत के पुण्य का फल मिलता है। श्रद्धा से जो इस पवित्र एकादशी का व्रत करता है, वह हर तरह के पापों से मुक्त होता है। नौतपा के चलते जलदान से मिलता है पुण्य

निर्जला एकादशी ज्येष्ठ महीने में नौतपा के दौरान आती है, इस महीने में जल की पूजा और दान करने का भी बहुत महत्व होता है, ये ही वजह है कि इस दिन पानी से भरे मटकों का दान करते हैं और जरुरतमंद लोगों को पानी पिलाया जाता है। इस तिथि पर तुलसी, पीपल और बरगद में भी पानी चढ़ाने से कई गुना पुण्य मिलता है।

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Web Title-Nirjala Ekadashi is known as Bhimseni Ekadashi, one gets the result of 24 Ekadashi fasts
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