आश्विन
मास के कृष्ण पक्ष
में मनाया जाने वाला श्राद्ध
पक्ष भाद्रपद पूर्णिमा से ही मनाया
जाता हैं जो कि
29 सितंबर, शुक्रवार से शुरू हो
रहे हैं। शुक्रवार से
अगले 16 दिन आश्विन अमावस्या
तक श्राद्ध कर्म किए जाएंगे।
श्रद्धा भाव रखते हुए
पूर्वजों का श्राद्ध पितरों
की शांति के लिए विधि-विधान से करना चाहिए।
इस दौरान पितृपक्ष पूजा के नियम
अपनाते हुए भोजन करने
पर भी ध्यान दिया
जाना चाहिए। मान्यता है कि इन
दिनों में सात्विक भोजन
ही करना चाहिए और
बाहर के खाने से
परहेज करना चाहिए।
आज इस कड़ी में
हम आपको पितृपक्ष पूजा
के नियम और किन
चीजों का सेवन नहीं
करना चाहिए उसके बारे में
बताने जा रहे हैं।
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पितृपक्ष पूजा के सही नियम
—पितृ पक्ष के दिनों
में सुबह उठकर स्नान
करके देव स्थान व
पितृ स्थान को गाय के
गोबर लिपकर व गंगाजल से
पवित्र करें।
—घर आंगन में रंगोली
बनाएं।
—महिलाएं शुद्ध होकर पितरों के
लिए भोजन बनाएं।
—श्राद्ध का अधिकारी श्रेष्ठ
ब्राह्मण (या कुल के
अधिकारी जैसे दामाद, भतीजा
आदि) को न्यौता देकर
बुलाएं।
—ब्राह्मण से पितरों की
पूजा एवं तर्पण आदि
कराएं।
—पितरों
के निमित्त अग्नि में गाय का
दूध, दही, घी एवं
खीर अर्पित करें।
—गाय,
कुत्ता, कौआ व अतिथि
के लिए भोजन से
चार ग्रास निकालें।
—ब्राह्मण
को आदरपूर्वक भोजन कराएं, मुखशुद्धि,
वस्त्र, दक्षिणा आदि से सम्मान
करें।
—ब्राह्मण
स्वस्तिवाचन तथा वैदिक पाठ
करें एवं गृहस्थ एवं
पितरों के प्रति शुभकामनाएं
व्यक्त करें।
—घर
में किए गए श्राद्ध
का पुण्य तीर्थस्थल पर किए गए
श्राद्ध से आठ गुना
अधिक मिलता है।
—आर्थिक
कारण या अन्य कारणों
से यदि कोई व्यक्ति
बड़ा श्राद्ध नहीं कर सकता
लेकिन अपने पितरों की
शांति के लिए वास्तव
में कुछ करना चाहता
है, तो उसे पूर्ण
श्रद्धा भाव से अपने
सामर्थ्य अनुसार उपलब्ध अन्न, साग-पात, फल
और जो संभव हो
सके उतनी दक्षिणा किसी
ब्राह्मण को आदर भाव
से दे देनी चाहिए।
—यदि
किसी परिस्थिति में यह भी
संभव न हो तो
7-8 मुट्ठी तिल, जल सहित
किसी योग्य ब्राह्मण को दान कर
देने चाहिए। इससे भी श्राद्ध
का पुण्य प्राप्त होता है।
—हिन्दू
धर्म में गाय को
विशेष महत्व दिया गया है।
किसी गाय को भरपेट
घास खिलाने से भी पितृ
प्रसन्न होते हैं।
—यदि
उपरोक्त में से कुछ
भी संभव न हो
तो किसी एकांत स्थान
पर मध्याह्न समय में सूर्य
की ओर दोनों हाथ
उठाकर अपने पूर्वजों और
सूर्य देव से प्रार्थना
करनी चाहिए।
—प्रार्थना
में कहना चाहिए कि,
‘हे प्रभु मैंने अपने हाथ आपके
समक्ष फैला दिए हैं,
मैं अपने पितरों की
मुक्ति के लिए आपसे
प्रार्थना करता हूं, मेरे
पितर मेरी श्रद्धा भक्ति
से संतुष्ट हो’। ऐसा
करने से व्यक्ति को
पितृ ऋण से मुक्ति
मिलती है।
—जो भी श्रद्धापूर्वक श्राद्ध
करता है उसकी बुद्धि,
पुष्टि, स्मरणशक्ति, धारणाशक्ति, पुत्र-पौत्रादि एवं ऐश्वर्य की
वृद्धि होती। वह पर्व का
पूर्ण फल भोगता है।
पितृपक्ष
में न करें इन चीजों का सेवन
—शास्त्रों के अनुसार, इस
दौरान मूली और गाजर
का सेवन नहीं करना
चाहिए। दरअसल, मूली और गाजर
को अशुद्ध माना जाता है।
पूजा पाठ में इनका
इस्तेमाल भी वर्जित है
दरअसल, इस सब्जियों का
संबंध राहु से होता
है।
—पक्का चावल जिसे उसना
भी कहा जाता है
इसका सेवन भी पितृपक्ष
में वर्जित माना गया है।
पूजा पाठ के काम
में अरवा चावल का
इस्तेमाल किया जाता है
जिसे कच्चे चावल के नाम
से भी जाना जाता
है। इसका सेवन आप
कर सकते हैं।
—पितृपक्ष में मसूर की
दाल का सेवन नहीं
करना चाहिए। दरअसल, ऐसा करना अशुभ
माना जाता है। ज्योतिष
शास्त्र में मसूर दाल
का संबंध मंगल से माना
गया है और मंगल
क्रोध का कारक है।
इसलिए मसूर दाल का
सेवन पितृपक्ष में मना किया
गया है।
—शास्त्रों में अरबी का
सेवन भी पितृपक्ष में
वर्जित माना गया है।
इसलिए इस दौरान अरबी
और करेला को सेवन भूलकर
भी न करें। वरना
आपके पितृ आपसे नाराज
हो सकते हैं।
—पितृपक्ष में दूध का
सेवन नहीं करना चाहिए।
हालांकि, आप जिस दिन
पितरों की तिथि है
उस दिन उनके नाम
सा खीर बना सकते
हैं। दरअसल, खीर को पितरों
का भोजन माना गया
है। इसलिए खीर का सेवन
आप कर सकते हैं।
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