वर्तमान में प्रत्येक युवा ऐसे कॅरिअर का चुनाव करना चाहता
है, जिसमें वह अपने जीवन की जरूरतों और महत्त्वाकांक्षाओं को पूर्ण कर सके,
लेकिन ऐसा हो, जरूरी नहीं। दरअसल, भाग्य और परिश्रम दोनों का जब संयोग
बनता है, तभी सफलता कदम चूमती है। उत्तम शिक्षा प्राप्त हो और उसी के
अनुरूप श्रेष्ठ कार्यक्षेत्र भी मिले, इसके लिए ज्योतिष शास्त्र मार्गदर्शक
एवं सहयोगी हो सकता है।
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जन्मपत्रिका में द्वितीय भाव वाणी एवं ज्ञान के उपयोग
का प्रदाता माना जाता है। इस भाव के श्रेष्ठ होने पर जातक स बन्धित क्षेत्र
में जहां अपनी वाणी से सफलता प्राप्त करता है, वहीं स बन्धित ज्ञान का
उपयोग भी पूर्ण रूप से कर पाता है। इसी प्रकार तृतीय भाव उसकी रुचि एवं
पराक्रम का होता है। इससे जहां जातक की किसी विषय विशेष में रुचि प्रकट
होती है, वहीं यह भाव कार्यक्षेत्र के अनुकूल मानसिक दृढ़ता यानी पराक्रम
का भी द्योतक है। चतुर्थ भाव प्राथमिक शिक्षा और पंचम भाव उच्च शिक्षा का
माना गया है। इन भावों पर शुभ प्रभाव तथा इनके स्वामियों की बली एवं शुभ
स्थिति शिक्षा में सफलता दिलाने वाली होती है। इसके अतिरिक्त बुध एवं गुरु
तथा शिक्षा के विषय के कारक ग्रह का भी बली एवं शुभ स्थिति में होना आवश्यक
है।
यदि उक्त भावों में पापग्रह अथवा त्रिकेश स्थित हों तथा
इनके स्वामी भी त्रिक भावस्थ हों, नीच या शत्रु राशिस्थ हों अथवा अस्त या
वक्री हों, तो शिक्षा में बाधाएं उत्पन्न होती हैं। यदि शिक्षा प्राप्ति के
दौरान राहु, केतु या त्रिकेश की दशा-अन्तर्दशा विद्यमान हो अथवा गोचर में
गुरु, शनि, राहु आदि ग्रह अशुभ फलप्रद हों, तो भी शिक्षा में बाधाएं आती
हैं।
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