लोगों में मांगलिक दोष को लेकर कई तरह की भ्रांतियां
व्याप्त हैं। लेकिन शास्त्रों के अनुसार मांगलिक होना कोई चिंता की वजह
नहीं है। यदि आपके पुत्र या पुत्री की कुंडली मांगलिक है, तो घबराएं नहीं,
शास्त्रों में मंगल दोष दूर करने के उपाय लिखित में उपलब्ध हैं।
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तब होती है कुंडली मांगलिक
जन्म कुंडली में जब मंगल जन्म
लग्न से 1, 4,7,8,12वें भाव में स्थित हो तो ऐसी कुंडली मांगलिक कहलाती
है। चंद्र लग्न से मंगल की यही स्थिति चंद्र मांगलिक कहलाती है। यदि दोनों
ही स्थितियों से मांगलिक हो तो बोलचाल की भाषा में इसे डबल मांगलिक और
केवल चंद्र मांगलिक हो तो उसे आंशिक मांगलिक भी कहते हैं। मांगलिक पुरुष
जातक की कुंडली में मंगल की यह स्थिति हो तो वह पगड़ी मंगल (पाग मंगली) और
स्त्री जातक की चुनरी मंगल वाली कुंडली कहलाती है।
मंगल दोष के परिहार
स्वयं की कुंडली में
जैसे शुभ ग्रहों का केंद्र में होना, शुक्र
द्वितीय भाव में हो, गुरु मंगल साथ हों या मंगल पर गुरु की दृष्टि हो तो
मांगलिक दोष का परिहार हो जाता है।
वर-कन्या की कुंडली में आपस
में मांगलिक दोष की काट- जैसे एक के मांगलिक स्थान में मंगल हो और दूसरे के
इन्हीं स्थानों में सूर्य, शनि, राहू, केतु में से कोई एक ग्रह हो तो दोष
नष्ट हो जाता है।
मेष का मंगल लग्न में, धनु का द्वादश भाव में, वृश्चिक का चौथे
भाव में, वृष का सप्तम में, कुंभ का आठवें भाव में हो तो भौम दोष नहीं
रहता।
कुंडली में मंगल यदि स्व-राशि (मेष, वृश्चिक), मूलत्रिकोण, उच्चराशि (मकर),
मित्र राशि (सिंह, धनु, मीन) में हो तो भौम दोष नहीं रहता है।
सिंह लग्न और कर्क लग्न में भी लग्नस्थ मंगल का दोष नहीं होता है।
शनि, मंगल या कोई भी पाप ग्रह जैसे राहु, सूर्य, केतु अगर मांगलिक भावों
(1,4,7,8,12) में कन्या जातक के हों और उन्हीं भावों में वर के भी हों तो
भौम दोष नष्ट होता है। यानी यदि एक कुंडली में मांगलिक स्थान में मंगल हो
तथा दूसरे की में इन्हीं स्थानों में शनि, सूर्य, मंगल, राहु, केतु में से
कोई एक ग्रह हो तो उस दोष को काटता है।
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