यदि परिवार
में किसी सदस्य की मृत्यु हुई हो और उस व्यक्ति की कोई आखरी इच्छा जो अधूरी
रह गई हो और कोई बचा हुआ काम उसके परिवारजनों द्वारा पूरा नहीं किया गया,
तो उस व्यक्ति की आत्मा भटकती रहती है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
इसी कारण परिवार में अशुभता बढ़ती
रहती है और इसी को पितृदोष कहते है। ज्योतिष के अनुसार, जन्म कुंडली के
प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम व दशम भावों में से किसी एक भाव
पर सूर्य-राहु अथवा सूर्य-शनि का योग हो तो जातक की कुंडली में पितृ दोष
होता है। यह योग कुंडली के जिस भाव में होता है वहां अशुभ फल घटित होते
हैं।
जैसे प्रथम भाव में सूर्य-राहु अथवा सूर्य-शनि आदि का अशुभ योग हो तो
उस व्यक्ति को अशांत, गुप्त चिंता एवं स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का
सामना करना पड़ता हैं। पितृदोष से पीडि़त जातक की उन्नति में बाधा रहती है।
पितृदोष निवारण के उपाय...
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