हिंदू धर्म ग्रंथो में इस बात का वर्णन हैं की देवों से पहले पितरों की
पूजा होनी चाहिए। कहते हैं जब पितृ प्रसन्न होंगे तभी देव भी खुश होंगे।
हिंदू अपने पूर्वजों (अर्थात पितरों) को विशेष रूप से भोजन प्रसाद के
माध्यम से सम्मान, धन्यवाद व श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। ये भी पढ़ें - हरिद्वार में है भटके हुए देवता का मंदिर
ऐसी
मान्यता है कि इन दिनों में हमारे पितर पितृलोक से पृथ्वीलोक पर आते हैं।
वैसे तो प्रत्येक मास की अमावस्या को श्राद्ध कर्म किया जा सकता है, लेकिन
भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या तक पूरा पखवाड़ा
श्राद्ध कर्म करने का विधान है।
पितृपक्ष 13 से शुरू होकर 28
सितंबर को पितृविसर्जन के साथ समाप्त होगा। पिता के लिए अष्टमी तो माता के
लिये नवमी की तिथि श्राद्ध करने के लिये उपयुक्त मानी जाती है। श्राद्ध में
ब्राह्मण को भोजन जरूर करवाना चाहिए।
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