श्राद्धपक्ष के दो दिन बाकी हैं। इन दिनों में सभी अपने पूर्वजों का श्राद्ध करते हुए उनकी आत्मा को संतृप्त करते हैं। कहा जाता है कि इन 15 दिनों में पितृ धरती पर आते है और घर में विराजते हैं। सर्वपितृ अमावस्या के साथ इस पितृपक्ष का समापन होता है। इस दिन को पितृविसर्जनी अमावस्या के तौर पर भी जाना जाता हैं। भूले-बिसरे पितरों का भी सर्वपितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध किया जाता है। इस दिन उन लोगों का भी श्राद्ध किया जाता है जिनकी तिथि में कोई भूल हो जाती है। हम आपको बताने जा रहे हैं कुछ ऐसे उपाय जो इस दिन जरूर करने चाहिए— ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
तर्पण और पिंडदान
सर्वपितृ अवमावस्या पर तर्पण और पिंडदान का खासा महत्व है। सामान्य विधि के अनुसार पिंडदान में चावल, गाय का दूध, घी, गुड़ और शहद को मिलाकर पिंड बनाए जाते हैं और उन्हें पितरों को अर्पित किया जाता है। पिंडदान के साथ ही जल में काले तिल, जौ, कुशा, सफेद फूल मिलाकर तर्पण किया जाता है। पिंड बनाने के बाद हाथ में कुशा, जौ, काला तिल, अक्षत् व जल लेकर संकल्प करें। इसके बाद इस मंत्र को पढ़े। "ॐ अद्य श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त सर्व सांसारिक सुख-समृद्धि प्राप्ति च वंश-वृद्धि हेतव देवऋषिमनुष्यपितृतर्पणम च अहं करिष्ये।
गरूढ़ पुराण का पाठ
गरुढ़ पुराण में, मृत्यु के पहले और बाद की स्थिति के बारे में बताया गया है। इसीलिए यह पुराण मृतक को सुनाया जाता है। सर्वपितृ अमावस्या के दिन गरुढ़ पुराण के कुछ खास अध्यायों का पाठ करें या गीता का पाठ जरूर करें या घर में ही करवाएं।
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