नक्षत्र ज्योतिष के अनुसार सभी 27 नक्षत्रों में से पुष्य को सर्वश्रेष्ठ
माना गया है। पुष्य सभी अरिष्टों का नाशक है। विवाह को छोडक़र अन्य कोई भी
कार्य आरंभ करना हो तो पुष्य नक्षत्र श्रेष्ठ मुहूर्तों में से एक है।
पार्वती विवाह के समय शिव से मिले श्राप के परिणाम स्वरूप पाणिग्रहण
संस्कार के लिए इस नक्षत्र को वर्जित माना गया है। अभिजीत मुहूर्त को भगवान
विष्णु के सुदर्शन चक्र के समान शक्तिशाली बताया गया है फिर भी पुष्य
नक्षत्र और इस दिन बनने वाले शुभ मुहूर्त का प्रभाव अन्य मुहूर्तों की
तुलना में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। ये भी पढ़ें - इस दिशा में हो मंदिर, तो घर में होती है कलह
ज्योतिर्विद पंडित भगवान सहाय
जोशी के अनुसार ज्योतिष में गुरु-पुष्य नक्षत्र की खरीदी को धन आगमन के लिए
अति शुभ माना गया है। दीपावली के पहले खरीददारी और निवेश संबंधी कोई भी
कार्य के लिए यह महामुहूर्त का संयोग बना है। इस महामुहूर्त को ग्रहों की
स्थिति और बहुत खास बना रही है। 28 अक्टूबर को गुरु और शनि ग्रह एक साथ एक
ही राशि मकर में विराजमान होंगे। गोचर में गुरु-शनि के साथ मकर राशि में
विराजमान हैं और गुरुवार के दिन शनि का नक्षत्र यानी पुष्य नक्षत्र होने से
गुरु-पुष्य-शनि योग पूर्ण माह योग बन रहा है। पुष्य नक्षत्र के लिए शनि और
गुरु दोनों ही पूजनीय माने गए हैं। पुष्य नक्षत्र के स्वामी शनिदेव हैं।
पुष्य
नक्षत्र का सबसे ज्यादा महत्व बृहस्पतिवार और रविवार को होता है।
बृहस्पतिवार के दिन पुष्य नक्षत्र होने पर गुरु-पुष्य और रविवार को
रवि-पुष्य योग बनता है। बृहस्पति देव और प्रभु राम भी इसी नक्षत्र में पैदा
हुए थे। नारद पुराण के अनुसार इस नक्षत्र में जन्मा जातक महान कर्म करने
वाला, बलवान, कृपालु, धार्मिक, धनी, विविध कलाओं का ज्ञाता, दयालु और
सत्यवादी होता है।
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