नई दिल्ली। भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक होली जिसे आम तौर पर लोग
‘रंगो का त्योहार’ भी कहते हैं हिंदू पंचांग के मुताबिक फाल्गुन माह में
पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। देश के दूसरे त्योहारों की तरह होली को भी
बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। ढोल की धुन और घरों के
लाउड स्पीकरों पर बजते तेज संगीत के साथ एक दूसरे पर रंग और पानी फेंकने का
मजा देखते ही बनता है। होली के साथ कई प्राचीन पौराणिक कथाएं भी जुड़ी हैं
और हर कथा अपने आप में विशेष है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
यह रंगो का त्योहार कब से शुरू
हुआ इसका जिक्र भारत की विरासत यानी कि हमारे कई ग्रंथों में मिलता है।
शुरू में इस पर्व को होलाका के नाम से भी जाना जाता था। इस दिन आर्य
नवात्रैष्टि यज्ञ किया करते थे। मुगल शासक शाहजहां के काल में होली को
ईद-ए-गुलाबी के नाम से संबोधित किया जाता था।
होली को लेकर जिस
पौराणिक कथा की सबसे ज्यादा मान्यता है वह है भगवान शिव और पार्वती की।
पौराणिक कथा में हिमालय पुत्री पार्वती चाहती थीं कि उनका विवाह भगवान शिव
से हो लेकिन शिव अपनी तपस्या में लीन थे। कामदेव पार्वती की सहायता के लिए
आते हैं और प्रेम बाण चलाते हैं जिससे भगवान शिव की तपस्या भंग हो जाती है।
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