हरितालिका तीज का व्रत भाद्रपद शुक्ल की तृतीया को करने का विधान है। इस
बार यह व्रत गुरुवार को है। यह व्रत द्वितीया व तृतीया तिथि के बीच न
होकर अगर चतुर्थी के बीच हो तो अत्यंत शुभकारी माना जाता है, क्योंकि
द्वितीया तिथि पितरों की तिथि तथा चतुर्थी तिथि पुत्र की तिथि मानी गई। इस
व्रत को करने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
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महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए निर्जला और निराहार रहकर ये व्रत करती हैं। वहीं कुवांरी लड़कियों के लिए भी ये व्रत बड़ा खास माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि कुवांरी लड़कियां अगर इस व्रत को करें तो उन्हें भगवान शिव जैसा पति मिलता है।
ज्योतिषाचार्य
पंडित रामध्यान पांडेय बताते हैं कि शास्त्र इस व्रत को सधवा व विधवा सबको
करने की आज्ञा देता है। व्रत करने वाली स्त्रियों को चाहिए की व्रत के दिन
सायंकाल घर को तोरण आदि से सुशोभित कर आंगन में कलश रख कर उस पर शिव एवं
गौरी की प्रतिष्ठा बनाएं। उनका षोड्शोपचार पूजन करें तथा मां गौरी का ध्यान
कर इस मंत्र का यथासंभव जप करें-
‘‘देवि देवि उमे गौरी त्राहि माम करुणा निधे,
ममापराधा छन्तव्य भुक्ति मुक्ति प्रदा भव।’’
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