जब से वास्तु का प्रचलन बढ़ा है तब से घर की तोड़-फोड़
ज्यादा होने लगी है। अनावश्यक तोड़-फोड़ से आर्थिक नुकसान तो होता ही है
तथा साथ ही वास्तुभंग का दोष भी लगता है। मात्र दिशाओं के अनुसार किया
निर्माण कार्य हमेशा शुभ फलदायक हो, यह आवश्यक नहीं है। अशुभ समय में किया
गया कार्य कितना ही वास्तु सम्मत क्यों न हो नुकसान उठाना पड़ सकता है। ऐसे
में वास्तु से जुड़ी भ्रांतियों को समझने और उनके समाधान से ही उचित
रास्ता निकल सकता है।
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वास्तु में सबसे ज्यादा मतांतर मुख्य द्वार को
लेकर है। अक्सर लोग अपने घर का द्वार उत्तर या पूर्व दिशा में रखना चाहते
हैं। लेकिन समस्या तब आती है जब भूखंड के केवल एक ही ओर दक्षिण दिशा में
रास्ता हो। वास्तु में दक्षिण दिशा में मुख्य द्वार रखने को प्रशस्त बताया
गया है। आप भूखंड के 81 विन्यास करके आग्नेय से तीसरे स्थान पर जहां गृहस्थ
देवता का वास है द्वार रख सकते हैं। द्वार रखने के कई सिद्धांत प्रचलित
हैं जो एक दूसरे को काटते भी हैं। ऐसे में असमंजस पैदा हो जाता है। ऐसी
स्थिति में सभी विद्वान मुख्य द्वार को कोने में रखने से मना करते हैं।
ईशान कोण को पवित्र मानकर और खाली जगह रखने के उद्देश्य से कई लोग यहां
द्वार रखते है लेकिन किसी भी वास्तु पुस्तक में इसका उल्लेख नहीं मिलता है।
दूसरी
समस्या लेट-बाथ की आती है। क्योंकि जहां लैट्रिन बनाना प्रशस्त है वहां
बाथरूम बनाया जाना वर्जित है। यहां ध्यान रखना चाहिए कि जहां वास्तु सम्मत
लैट्रिन बने वहीं बाथरूम का निर्माण करे। यानी लैट्रिन को मुख्य मानकर उसके
स्थान के साथ बाथरूम को जोड़े। यहां तकनीकी समस्या पैदा होती है कि
लैट्रिन के लिए सेप्टिक टैंक कहां खोदें क्योंकि जो स्थान लैट्रिन के लिए
प्रशस्त है वहां गड्डा वर्जित है। ऐसे में आप दक्षिण मध्य से लेकर नैऋत्य
कोण तक का जो स्थान है उसके बीच में अटैच लेटबाथ बनाएं और उत्तर मध्य से
लेकर वायव्य कोण तक का जो स्थान है उसके बीच सेप्टिक टैंक का निर्माण
कराएं।
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