प्राचीन समय से ही भवन के मुख्य दरवाजे के ऊपरी भाग तथा
दरवाजे के दायीं तथा बायीं ओर किसी न किसी मांगलिक चिन्ह का प्रयोग किया
जाता रहा है। ऐसा माना जाता है कि इन मांगलिक चिन्हों के उपयोग से घर में
सुख, शांति, धन, सम्मान आदि प्राप्त होते हैं। ऐसा ही एक मांगलिक चिन्ह है
स्वास्तिक। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
शुभ कार्यों के प्रतीक के रूप में स्वास्तिक
का प्रयोग भारत में ही नहीं, बल्कि जर्मनी, यूनान, फ्रांस, जापान, सिसली,
स्पेन, सीरिया, चीन, साइप्रस आदि देशों में किसी न किसी रूप में किया जाता
है।
समय-समय पर घर, दूकान और वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों में आयोजित
होने वाले धार्मिक आयोजनों और तीज-त्यौहारों के समय स्वास्तिक चिन्ह भवन के
मुख्य दरवाजे के दोनों ओर तथा पूजा स्थल पर हल्दी, रोली, आटा, चावल, अनाज,
चंदन , गुलाल आदि के द्वारा बनाया जाता है। धार्मिक दृष्टि से स्वास्तिक
को सुख, सौभाग्य, समृद्धि, शांति और मंगल का प्रतीक माना गया है।
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