ग्रह माना गया है, परन्तु ऐसा सदैव नहीं है, यदि शनि
शुभ स्थिति में हुआ तो उच्चस्तरीय एवं स्थायी प्रगति देता है। ऐसा शनि
इच्छाधारी नाग के समान है, जो सभी अभिलाषाओं को पूर्ण करता है। सूर्य से
प्रभावित होने पर यह जहरीला हो जाता है। लाल किताब में शनि को पानी का
सांप, बच्चे खाने वाला सांप, किस्मत लिखने का मालिक, विधाता की कलम, किस्मत
को जगाने वाला, स्वयं विधाता जैसे संबोधनों से संबोधित किया गया है। सूर्य
से पूर्ण दृष्टि संबंध होने पर शनि का प्रभाव तीन गुना मंदा हो जाता है।
लाल किताब के अनुसार, शनि जिस भाव में स्थित है, उस स्थिति के अनुसार ही
उपाय करना चाहिए।
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भावानुसार शनि के उपाय
प्रथम भाव: प्रथम भाव
में शनि होने पर उसकी अनुकूलता के लिए जमीन में सुरमा दबाना चाहिए। बड़ के
पेड़ की जड़ में दूध डालकर उसकी मिट्टी से माथे पर तिलक लगाना चाहिए।
द्वितीय भाव:
द्वितीय भाव में स्थित होकर यदि शनि विपरीत हो, तो अपने इष्ट की पूजा,
जुए-सट्टे से दूरी, धार्मिक संस्थाओं में दान आदि कार्य करने चाहिए।
तृतीय भाव: तृतीय भाव में स्थित होकर शनि प्रतिकूल फलकारक होने
पर पानी में चावल बहाएं। घर में एक ऐसे कक्ष का निर्माण करवाएं, जहां पर
सूर्य का प्रकाश नहीं पहुंचता हो।
चतुर्थ भाव: चतुर्थ भाव में शनि होने पर रात में दूध नहीं पीना
चाहिए। मछली को दाना डालना चाहिए। किसी मजदूर एवं गरीब व्यक्ति की मदद करनी
चाहिए। कुएं में दूध गिराना चाहिए।
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