CP1 अनोखे कोहिनूर के दीवाने ब़डे-ब़डे - www.khaskhabar.com
  • Aapki Saheli
  • Astro Sathi
  • Business Khaskhabar
  • ifairer
  • iautoindia

अनोखे कोहिनूर के दीवाने ब़डे-ब़डे

published: 11-11-2012

नई दिल्ली। दक्षिण भारत के कर्नाटक में सुंदर और समृद्ध प्राचीन रियासत मैसूर अब एक जिला है। इस जिले के बीजापुर तथा गोलकुंडा में हीरा और सोने की खान हैं। कोहिनूर हीरा गोलकुंडा की हीरे की खान से निकला था। वहां से यह दिल्ली के बादशाहों के हाथ में आया। सन् 1739 में यह हीरा दिल्ली के बादशाह के हाथ से ईरान के एक सरदार नादिरशाह दुर्रानी के हाथ में पहुंचा। एक जमाना था, जब संसार के ब़डे-ब़डे शक्तिशाली बादशाह भी भारतवासियों के डर के मारे कांपते थे। भारत पर चढ़ाई करने का किसी को भी साहस न था, किंतु बाद में आपसी फूट ने विदेशियों को मौका दे दिया। कभी चंगेज खां ने हमें लूटा तो कभी तैमूर ने। सन् 1739 में ईरान के नादिरशाह ने काबुल की राह से भारत पर आक्रमण किया। सिंधु नदी को नावों के पुल से पारकर जब नादिरशाह लाहौर आया तो वहां के सूबेदार ने उसका मुकाबला किया पर वह हार गया। फिर तो नादिरशाह बेरोकटोक दिल्ली की ओर बढ़ा चला आया। उस समय दिल्ली पर बादशाह मोहम्मद शाह राज करता था। वह ब़डा विलासी था। उसने कुछ सेना तैयार कर नादिरशाह से ल़डने को भेजी किंतु नादिरशाह की वीर सेना के सामने दिल्ली की सेना के पांव उख़्ाड गए। मोहम्मद शाह ने घबराकर नादिरशाह से संधि कर ली। दिल्ली में नादिरशाह मोहम्मद शाह के महल में ही ठहरा। उसकी सेना सारे शहर में फैल गई, किंतु उसने अपनी सेना को शहर न लूटने को क़डी आज्ञा दे दी। यहां तक कि उसने स्थान-स्थान पर पहरे बिठा दिए लेकिन दिल्ली के लोगों में किसी ने खबर फैला दी कि "नादिरशाह मर गया"। फिर तो दिल्ली के लोगों में खुशी का ठिकाना न रहा। जोश में आकर उन्होंने नादिरशाह के सिपाहियों को मारना शुरू कर दिया। लोगों को शांत करने के लिए नादिशाह अगले दिन सुबह अपने घो़डे पर सवार होकर निकला। लोगों ने उस पर भी ईट-पत्थर बरसाए। इतना ही नहीं, किसी ने नादिरशाह पर गोली भी चला दी। नादिरशाह तो बच गया, लेकिन उसका सरदार मारा गया। इस घटना के बाद नादिरशाह ने कत्लेआम का हुक्म दे दिया। नादिरशाह के सिपाहियों ने दिल्ली की गलियों में रक्त की धाराएं बहा दीं। दिल्ली से लौटते समय नादिरशाह कई करो़ड रूपये, कई करो़ड रूपये मूल्य के सोने-चांदी के बर्तन तथा आभूषण और साथ में कोहिनूर हीरा भी ले गया। कोहिनूर को नादिरशाह ने ब़डी तरकीब से हासिल किया। उसने उसकी प्रशंसा पहले से ही सुन रखी थी; लेकिन जब उसे कहीं भी कोहिनूर न मिला तो उसने बादशाह मोहम्मद शाह के महल की एक दासी से पता लगाया कि हीरा बादशाह की पग़डी में है। यही कारण था कि बादशाह उस पग़डी को कभी भी अपने सिर से अलग न करता था। नादिरशाह ने एक चाल चली। उसने मोहम्मद शाह को फिर से दिल्ली के तख्त पर बिठाया। नियम के अनुसार मोहम्मद शाह को अपनी पग़डी नादिरशाह के सिर पर रखनी प़डी। पग़डी के सिर पर आते ही नादिरशाह ने फौरन दरबार बर्खास्त किए जाने की घोषणा कर दी और पग़डी लेकर सीधा अपने महल में चला आया। महल पर आकर नादिरशाह ने पग़डी खोली तो उसमें अमूल्य कोहिनूर दिखाई प़डा। कोहिनूर की चमक-दमक से नादिरशाह की आंखें चौंधिया गई और वह खुशी से चिल्ला उठा, ""कोहिनूर! कोहिनूर!"" यानी प्रकाश का पर्वत। उसी समय से इस प्रसिद्ध हीरे का नाम कोहिनूर प़डा। कोहिनूर ने देश-विदेश के बडे़ सैर-सपाटे किए। इसने ब़डा जमाना देखा है। इसे मल्लिकाओं, महाराजों तथा सम्राटों के सिर पर विराजने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। ईरान से कोहिनूर अफगानिस्तान के बादशाह शाहशुजा के हाथ लगा। शाहशुजा कोहनूर को प्राणों से भी अधिक प्यार करता था। जब बादशाह शाहशुजा के हाथ से अफगानिस्तान का राज्य छिन गया तो वह सहायता प्राप्त करने के लिए पंजाब केसरी महाराज रणजीत सिंह की शरण में आया। महाराज रणजीत सिंह ने शाहशुजा की ब़डी आवभगत की। उसे और उसकी बेगम को लाहौर की मुबारक हवेली में ठहराया, किंतु कोहिनूर मांगने पर शाहशुजा ने महाराज रणजीत सिंह को बहकाने की कोशिश की। महाराज ने मुबारक हवेली पर क़डा पहरा लगा दिया और उसमें दो दिन तक भोजन सामग्री का जाना भी बंद कर दिया। लाचार होकर शाहशुजा ने महाराज रणजीत सिंह को कोहिनूर भेंट कर दिया। महाराज ने चार-पांच वर्ष तक कोहनूर को हाथ के कंकण में डालकर पहना, फिर पग़डी में रखने लगे और इसके बाद बाजूबंद में ज़्ाडवाकर पहनने लगे। वे जहां भी जाते, कोहिनूर को संदूक में बंद कर उसे ऊंट की पीठ पर रखवाकर चलते थे। महाराज रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद सरदार नौनिहाल सिंह और शेर सिंह ने कोहिनूर को धारण किया। अंत में यह महाराज के पुत्र दिलीप सिंह के अधिकार में आया। सन् 1849 में पंजाब ब्रिटिश भारत में मिलाया गया। उस समय के ब़डे लाट लार्ड डलहौजी ने कोहिनूर को विश्वासपात्र अफसरों के साथ महारानी विक्टोरिया के पास भेज दिया। सन् 1850 में यह हीरा इंग्लैंड की एक प्रदर्शिनी में रखा गया। इंगलैंड जाते समय कोहिनूर का वजन 186 कैरेट था। महारानी विक्टोरिया और राजकुमार को इस हीरे की गढ़ंत पसंद न आई। अत: खराद पर चढ़ाने के लिए इसे ब़डे-ब़डे जौहरियों को दिखाया गया। हीरों को रेतने के लिए हालैंड देश के कारीगर संसार-प्रसिद्ध हैं। हालैंड की राजधानी की एक कम्पनी ने इसको रेतने का भार अपने ऊपर ले लिया। इसको रेतने में 38 दिन लगे और प्रतिदिन 18 घंटे काम होता था, इस काम की मजदूरी के 1,20,000 रूपये देने प़डे थे। हीरों के सम्राट कोहिनूर का मूल्य उस समय 1,40,000 पौंड यानी 21,00,000 रूपये आंका गया था। संसार में कोहिनूर की टक्कर के एक-दो हीरे और भी हैं, किंतु कोई भी कोहिनूर जितना प्रसिद्ध नहीं। आजकल यह हीरा इंगलैंड की महारानी के राजमुकुट में ज़्ाडा है।  

Khaskhabar.com Facebook Page:

हॉलीवुड

आपका राज्य

Traffic

जीवन मंत्र

Daily Horoscope

Copyright © 2024 Khaskhabar.com Group, All Rights Reserved