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दो दशक बाद भी तू आशिकी है का जादू बरकरार: क्यों झंकार बीट्स आज भी अर्बन रोमांस सिनेमा की पहचान है

Tu Aashiqui Hai magic remains intact even after two decades: Why jhankar beats are still the hallmark of urban romance cinema - Bollywood News in Hindi

मुंबई। साल 2003 में, जब बॉलीवुड में अभी भी बड़े पैमाने पर मेलोड्रामा का बोलबाला था और सितारों से सजी बड़ी कास्ट वाली फिल्मों का होना आम बात थी, तब सुजॉय घोष ने प्रीतिश नंदी कम्युनिकेशंस (PNC) के साथ अपने निर्देशन की शुरुआत की। झंकार बीट्स ने चुपचाप यह दिखा दिया कि भारतीय सिनेमा चतुराई, संगीत और अनोखे आकर्षण के साथ कितनी ऊंचाइयाँ छू सकता है। यह फिल्म अपने आप में संगीत के दिग्गज आर.डी. बर्मन को एक बड़ा ट्रिब्यूट थी, जिसमें मुख्य किरदारों को ऐसे संगीत प्रेमी के रूप में दिखाया गया जो उनके संगीत से प्रेरणा लेते हैं। जूही चावला, संजय सूरी, राहुल बोस, रिंकी खन्ना, रिया सेन और नवोदित शायन मुंशी जैसे कलाकारों से सजी फिल्म झंकार बीट्स अपने समय से बहुत आगे की फिल्म थी। आज 22 साल बाद भी यह सादगी भरी संगीतमय कॉमेडी इस बात का प्रमाण है कि पीएनसी ने किस तरह उस दौर की फॉर्मूला फिल्मों से हटकर, न केवल प्रयोग किया बल्कि उसे सफल भी बनाया।
इस फ़िल्म में संजय सूरी द्वारा अभिनीत दीप और राहुल बोस द्वारा अभिनीत ऋषि की कहानी है, जो दिन में एक विज्ञापन एजेंसी में काम करते हैं और रात में क्लबों में परफ़ॉर्म करते हैं, ताकि वे झंकार बीट्स जीतने के अपने सपने को पूरा कर सकें, जो एक संगीत प्रतियोगिता है जिसे वे पिछले दो सालों से जीतने की कोशिश कर रहे थे।
इस फिल्म की खासियत केवल इसके रोमांस और कॉमेडी नहीं थी, बल्कि वह ईमानदारी, जिसके साथ इसमें रिश्तों को दिखाया गया — बिना किसी नाटकीय अतिशयोक्ति के, पूरी सच्चाई और अपनापन लिए हुए। यह फिल्म तीन अलग-अलग कपल्स की कहानियों के ज़रिए रिश्तों के विभिन्न पड़ावों को दिखाती है, जिससे युवा और शहरी दर्शकों को पहली बार पर्दे पर अपने जैसे किरदार और संघर्ष देखने को मिले। जिन्होंने शायद ही कभी अपने जीवन को इतनी ईमानदारी और हास्य के साथ स्क्रीन पर देखा हो।
एक और पहलू जो आज भी झंकार बीट्स को एक यादगार फ़िल्म बनाता है, वह है विशाल-शेखर द्वारा बनाया गया इसका बेहतरीन साउंडट्रैक, जिसमें 'तू आशिकी है', 'सुनो ना' और "बॉस कौन है' जैसे ट्रैक आज भी लोगों की प्लेलिस्ट में शामिल हैं। यह एल्बम बॉलीवुड में म्यूजिक और मूड के सही संतुलन का एक आदर्श उदाहरण बन गया।
प्रितिश नंदी कम्युनिकेशन्स, जिसने इससे पहले कांटे जैसी फिल्में दी थीं और बाद में चमेली और हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी जैसी कल्ट क्लासिक्स बनाई, उसके लिए झंकार बीट्स एक टर्निंग पॉइंट साबित हुई। यह फिल्म साबित करती है कि बिना बड़े सितारों, भव्य सेट्स या पारंपरिक फॉर्मूले के भी एक स्क्रिप्ट, सटीक कास्टिंग और दमदार संगीत के ज़रिए सिनेमा कितना प्रभावशाली हो सकता है।
झंकार बीट्स अपने दौर में पूरी तरह छा गई थी — फिल्म कई हफ्तों तक हाउसफुल चली और 100 दिनों से अधिक सिनेमाघरों में टिकी रही। आज, जब कंटेंट क्रिएटर्स लगातार नई कहानियों और फार्मैट्स की तलाश में हैं, झंकार बीट्स एक उत्कृष्ट उदाहरण है उस सहज मेल का — जहां संगीत, हास्य और दिल को छूती कहानी मिलकर एक ऐसा सिनेमा रचते हैं जो वक़्त से आगे था, और आज भी समय के पार है।

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