राय की पटकथा हमेशा उनकी सबसे बड़ी ताकत रही है। उनके
किरदार नीरस संवाद में भी जान डाल देते हैं। सशक्त पटकथा और संवादों के
सहारे दर्शकों को अपना बनाने वाली अतरंगी रे सिर्फ तीन मुख्य किरदार के
इर्द-गिर्द ही घूमती है। आनन्द ने पूरी फिल्म इन्हीं को केन्द्र में रखकर
लिखी व निर्देशित की है। प्रेम एक सामान्य धागा है जो इन तीन पात्रों को
बांधता है, लेकिन ऐसे कई क्षण हैं जहां कुछ मेलोड्रामा जोडऩे के लाभ के लिए
तर्क और तर्क को आधार से बाहर कर दिया जाता है। साथ ही, फिल्म की गति,
विशेष रूप से सेकेंड हाफ में, आपके धैर्य की अत्यधिक परीक्षा लेती है। ये भी पढ़ें - इस एक गाने ने मलाइका को रातों रात बनाया था स्टार, जानते हैं फिगर मेंटेन के राज ...
अतरंगी
रे प्यार, हानि, दु:ख, आघात की कहानी है, जो दर्शकों को यह तय करने देती
है कि फिल्म के आखिरी 20 मिनट में इन पात्रों को क्या विकल्प चुनना है।
अतरंगी रे को दर्शकों के सामने लाने के लिए आनन्द एल राय की जितनी तारीफ की
जाए वह कम है। उनकी यह फिल्म पिछली फिल्म जीरो से भी कहीं आगे है। यह
देखकर खुशी होती है कि एक निर्देशक ने नई जमीन को तोडऩे और प्रारूप और शैली
के साथ प्रयोग करने का जुनून दिखाया, फिर भी फिल्म निर्माण में अपने मूल
विश्वास पर कायम रहे। यह जोखिम भरा है लेकिन सही दिशा में एक स्वागत योग्य
कदम भी है। इस नए कथानक और कहानी को दर्शकों को पूरी तरह अपनाना चाहिए
अर्थात् उन्हें घर बैठे इस फिल्म को देखने का समय जरूर निकालना चाहिए।
—राजेश कुमार भगताणी
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