मुंबई। मौत कोई मजाक का विषय नहीं है। वहीं जब आपकी मौत नजदीक होती है तब आपको वास्तव में मृत्यु का आभास हो जाता है, तब इसका मजाक बनाने में ही बुद्धिमानी है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
मैंने इरफान को मजाकिया किरदार में काफी दिनों के बाद देखा। 'कारवां' के ट्रेलर में एक गंभीर व्यक्ति (मलयालम सुपरस्टार डलकर सलमान) ने उनके पिता के शव को केरल की कच्ची सड़कों से लाने के लिए इरफान को किराए पर लिया है।
शव की पहचान में पैदा हुआ भ्रम और उथल-पुथल कुंदन शाह की 'जाने भी दो यारों' की याद दिलाता है। लेकिन मेरा ध्यान इरफान के मजाक करने की समझ ने खींचा। उनकी हालिया दो फिल्में सड़क यात्रा पर आधारित हैं- 'पीकू' और 'करीब करीब सिंगल'। लेकिन आदतन बिल्कुल विपरीत सहयात्रियों से इतना ज्यादा मजाक उन्होंने पहले कभी नहीं किया, जैसे डलगर की शहरी महिला मित्र (वेब अभिनेत्री मिथिला पाल्कर) से देहाती भाषा में बात करना, अपराधियों से बात करना तथा डलकर को बार-बार बिना मांगे ज्ञान देना। जैसे, कभी किसी रोती लड़की और दूधवाले पर विश्वास मत करना।
पूरी फिल्म की बात करें तो 'कारवां' एक मिली-जुली कॉमेडी फिल्म लगती है, कॉमेडी करते समय इरफान की हाजिरजवाबी और मैं कह सकता हूं कि जीवन के प्रति उनके उत्साह को धन्यवाद। जब वह फिल्मी दुनिया की नकली वास्तविकता से दूर अपनी जिंदगी से लड़ रहे हैं, उनका उत्साह ऐसे समय में विशेषकर मुंहतोड़ और विडंबनापूर्ण लगता है।
बॉलीवुड में पदार्पण के लिए शांत, कम आक्रमक और कम महत्वपूर्ण किरदार स्वीकार करना डलकर के लिए मजे की बात है। इरफान और डलकर दोनों निर्भीक कलाकार हैं और दोनों को एक-दूसरे के सामने अभिनय करते देखना मजेदार रहेगा। यह शव और लुटेरों की अप्रत्याशित कहानी है।
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