नई दिल्ली। बॉलीवुड में अक्षय कुमार जैसे सुपरस्टार अगर 'लक्ष्मी बॉम्ब' जैसी किसी फिल्म में समलैंगिक किरदार निभा सकते हैं, तो ऐसे में समझा जा सकता है कि इंडस्ट्री की वाणिज्यिक फिल्मों में नए दौर की शुरुआत हो चुकी है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
आजकल बॉलीवुड की फिल्मों में हीरो की परिभाषा बदल चुकी है, अब इन्हें सिर्फ मसल्स के साथ या पांच-छह गुंडों से हीरोइन को बचाने वाले किसी शख्स के रूप में पेश नहीं किया जाता है। बदलते जमाने में कलाकार भी तरह-तरह की चीजों को अपनाने में अपनी पसंद जाहिर कर रहे हैं।
पहले के जमाने में समलैंगिक जैसी किसी भूमिका को केवल सहायक कलाकार या कम परिचित वाले नवागंतुक अभिनेता ही निभाते थे। यहां तक कि उस जमाने की फिल्मों में मुख्य अभिनेता का महिलाओं के रूप में सजना-संवरना भी या तो न के बराबर था या इन्हें सिर्फ गाने तक ही सीमित रखा जाता था, उदाहरण के तौर पर 'लावारिस' फिल्म में अमिताभ बच्चन पर फिल्माया गया 'मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है' या फिल्म 'बाजी' में आमिर खान के गाने 'डोले डोले' को लिया जा सकता है।
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