नई दिल्ली। गीतकार व केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) के अध्यक्ष प्रसून जोशी का कहना है कि व्यापक संदर्भ में हर सच्चा कलाकार इस बात को मानता है कि कला पर जिंदगी जीत जाती है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
साल 2015 में पद्मश्री से सम्मानित जोशी ने अपनी नई किताब ‘थिंकिंग अलाउड : रिफ्लेक्शंस ऑन इमर्जिंग इंडिया’ में टिप्पणी की है, ‘‘स्वंतत्रता ब्लैंक चेक नहीं है। यह जिम्मेदारी के साथ आती है...कलाकार जानते हैं कि वे मानवता से ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं हैं। चेहरे पर एक सच्चे आंसू की बंूद या दर्द के भाव को देखकर स्याही सूख जाएगी और ब्रश सख्त हो जाएगी।’’
रूपा द्वारा प्रकाशित किताब में उन्होंने कहा है कि वह अपने विचारों, सोच और शब्दों के साथ एक पुराना और गहरा रिश्ता साझा करते हैं।
जोशी का कहना है कि कला और रचनात्मतकता के साथ वह हमेशा खड़ा रहेंगे। उनका मानना है कि बनाना, गढऩा और अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता मानव अस्तित्व के स्वभाव से जुड़ी हुई है।
‘पद्मावत’ की रिलीज को हरी झंडी दिखाने पर जोशी कुछ तथाकथित समूहों के निशाने पर आ गए थे। उनका मानना है कि इन समूहों का उदय सिर्फ ‘सत्ता की राजनीति’ के चलते नहीं है।
उन्होंने कहा, ‘‘इस फिल्म के हिंसक विरोध के कारण मैं उदास और दुखी था। पूरी पिक्चर नहीं देखना गलत है।’’
जोशी ने कहा कि पूरी दुनिया बदलाव के एक दौर से गुजर रही है, जब तकनीक ने अप्रत्याशित तरीके से दुनिया को जोड़ दिया है।
(आईएएनएस)
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