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गत 30 सितम्बर को बॉक्स ऑफिस पर दो बड़ी फिल्मों का प्रदर्शन हुआ। इनमें एक फिल्म हिन्दी की विक्रम वेधा और दूसरी पैन इंडिया फिल्म पोन्नियन सेल्वन-1 थी। पोन्नियन सेल्वन-1 को लेकर कोई आशा नहीं थी कि यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर इतना बड़ा कारोबार करने में सफल होगी, इसका कारण यह बताया जा रहा था कि हिन्दी भाषा में प्रदर्शित होने वाली दक्षिण भारतीय फिल्में लगातार असफल हो रही थी। हालांकि हिन्दी में बनने वाली बड़े सितारों की फिल्में भी असफल हो रही थी। विक्रम वेधा को लेकर उम्मीद की जा रही थी कि यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कमाल दिखाने में सफल होगी, क्योंकि इसका टे्रलर को बहुत ज्यादा पसन्द किया गया था। लेकिन समस्त आशाएँ चकनाचूर हो गई। ऋतिक रोशन की इस फिल्म को ओपनिंग भी आयुष्मान खुराना की फिल्म जितनी मिली। इस फिल्म की असफलता से एक बात और साबित हुई कि खूब पसंद किए जाने वाले ट्रेलर से फिल्म सफल होगी, यह उम्मीद करना बेमानी होगा। 175 करोड की लागत से बनी इस फिल्म की असफलता ने हिन्दी फिल्म उद्योग को झटका दिया है। वहीं दूसरी ओर धीरे-धीरे हिन्दी भाषी क्षेत्रों में पोन्नियन सेल्वन-1 अपनी पकड़ बनाती जा रही है। यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर वैश्विक स्तर पर 325 करोड़ से ज्यादा का कारोबार एक सप्ताह में करने में सफल हो गई है, जिसमें अकेले तमिलनाडु में इस फिल्म ने 150 करोड़ का कारोबार किया है। खैर हम बात हिन्दी में बनाई गई विक्रम वेधा की असफलता की कर रहे थे। आइए डालते हैं एक नजर उन कारणों पर जिनके चलते इस फिल्म को दर्शकों ने सिरे से खारिज कर दिया—
रीमेक के चलते दूर हुए दर्शक
छह निर्माताओं द्वारा मिलकर बनाई गई विक्रम वेधा की असफलता का पहला सबसे बड़ा कारण इसका रीमेक होना था। यह वर्ष 2017 में आई तमिल ब्लॉकबस्टर फिल्म विक्रम वेधा का हिन्दी रीमेक था। तमिल रीमेक का हिन्दी में डब वर्जन पहले से ही ओटीटी प्लेटफार्म और यूट्यूब पर उपलब्ध था, जिसे दर्शक आर.माधवन और विजय सेतुपति के चलते कई बार देख चुके थे। यह दोनों सितारे हिन्दी भाषी दर्शकों में खासे लोकप्रिय हैं, जिसके चलते इसे ओटीटी और यूट्यूब पर पिछले 5 साल से लगातार देखा जा रहा था। फिल्म के निर्माताओं ने इस बात को नजरअंदाज किया जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा।
महंगी टिकट दरें
ऋतिक रोशन के होने से मल्टीप्लेक्स चैनों को इस बात की गलतफहमी थी कि दर्शक इस फिल्म को देखने आएंगे। उन्होंने अपने यहाँ टिकट दरों में कमी नहीं की, जिसके चलते भी दर्शक इससे दूर हुए। जो दर्शक ऋतिक रोशन के हार्डकोर प्रशंसक हैं, वो भी पूरी तादाद में सिनेमाघरों में नहीं आए। जो आए उन्होंने उनके अभिनय की भूरि-भूरि प्रशंसा की, इसके बावजूद दर्शक सिनेमाघर नहीं पहुँचे। हाल ही में इस फिल्म की असफलता को लेकर कुछ सिनेमाघरों के प्रबंधकों से बातचीत हुई थी उन्होंने इस बात को स्वीकारा कि यदि टिकट दर में थोड़ी भी रियायत कर दी जाती तो बॉक्स ऑफिस पर इसका आलम कुछ और होता।
पब्लिसिटी नहीं की गई
सैफ अली खान और ऋतिक रोशन जैसे सितारों को लेकर बनाई गई इस फिल्म का प्रचार-प्रसार सही तरीके से नहीं किया गया, जिसके चलते मॉस आडियंस को इस फिल्म के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं मिल पाई। प्रदर्शन से एक-दो दिन पूर्व अखबारों में एक विज्ञापन दे दिया गया था। विक्रम वेधा का यदि सही तरीके से प्रचार-प्रसार किया जाता तो बॉक्स ऑफिस पर तस्वीर का दूसरा पहलू नजर आता।
नाम ने पैदा की गफलत
इस फिल्म की असफलता में इसके नाम ने भी अहम् भूमिका निभाई। दर्शकों को जब इस बात की जानकारी मिली कि विक्रम वेधा नामक फिल्म आ रही है तो उन्हें लगा यह आर.माधवन और विजय सेतुपति की पुरानी फिल्म है, जिसे वे ओटीटी और यूट्यूब पर देख चुके हैं, जिसके चलते भी दर्शकों ने इस फिल्म से दूरी बना ली। फिल्म के निर्देशक पुष्कर गायत्री को समझदारी दिखाते हुए इस फिल्म का शीर्षक कुछ और देना चाहिए था, क्योंकि इस फिल्म के मूल तमिल वर्जन को भी उन्होंने ही निर्देशित किया था।
कथानक में थोड़े बदलाव के साथ चाहिए थी एक नामी हीरोइन
पुष्कर गायत्री ने इस फिल्म को जस का तस हिन्दी में फिल्माया, जिसके चलते भी दर्शकों की कमी से यह फिल्म जूझी। जिन दर्शकों ने यह फिल्म देखी, उन्हें पसन्द तो आई, लेकिन उनका कहना था कि यदि इस पटकथा में ऋतिक रोशन के साथ भी किसी नायिका चरित्र जोड़ा जाता तो फिल्म कुछ अलग ही रूप में सामने आती। इसके अतिरिक्त सैफ अली खान के साथ राधिका आप्टे के स्थान पर भी कोई नामी नायिका होनी चाहिए थी।
अन्तिम कारण पसन्द नहीं किए जा रहे रीमेक
हिन्दी भाषा में बनने वाली फिल्मों में 90 प्रतिशत फिल्में रीमेक बन रही हैं। ऐसा नहीं है कि दक्षिण भी हमारी हिन्दी फिल्मों के रीमेक नहीं बन रहे हैं, लेकिन हिन्दी में इनकी तादाद बहुत ज्यादा है। लगातार बन रहे रीमेक से दर्शके उखड़ चुके हैं। तकनीक के विकास के चलते इस भाषा में बनने वाली फिल्म दर्शकों के सामने पहले ही आ चुकी थी, फिर यदि उसका हिन्दी में रीमेक बनता है तो वह असफलता की ओर ही जाता है। विक्रम वेधा से पहले प्रदर्शित हुई रीमेक बच्चन पांडे, दोबारा, जर्सी, निकम्मा, लालसिंह चड्ढा (हॉलीवुड फिल्म फॉरेस्ट गम्प का रीमेक) बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुँह गिर चुके थे।
निष्कर्ष
कुल मिलाकर यह निष्कर्ष निकलता है कि हिन्दी भाषा में बनने वाली फिल्मों से मौलिकता खत्म हो चुकी है। दर्शक यह चाहता है कि निर्माता निर्देशक सिर्फ उन विषयों पर फिल्म बनाए जहाँ कथानक में मौलिकता हो। इस बात का सबूत हमें ओटीटी प्लेटफार्म अमेजन प्राइम वीडियो पर 6 अक्टूबर को प्रदर्शित हुई माधुरी दीक्षित की फिल्म माजा मा से मिलता, जिसे ओटीटी पर बड़ी सफलता मिली है। दर्शक इस फिल्म को एक बार देखने के बाद फिर देखना पसन्द कर रहा है। कारण फिल्म का कथानक, जिसे निर्देशक व कथा-पटकथाकार ने बेहतरीन तरीके से दर्शकों के सामने रखा है। इस फिल्म ने न सिर्फ दर्शकों को खुश किया बल्कि अपने भावनात्मक पलों के साथ उनके दिल को भी छू लिया। इसके अलावा फिल्म एक थॉट प्रोवोकिंग मैसेज भी देती है और रिश्तों की बारीकियों को भी सशक्तता के साथ दर्शाती है। हिन्दी फिल्मकारों के साथ फिल्म लेखकों को अपनी मौलिकता की ओर लौटने की सख्त आवश्यकता है जिससे कि वे फिर से सिनेमाघरों में दर्शकों को लाने में सफल हों और स्वयं भी कामयाब हो सकें।
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