हिन्दी सिनेमा में रमेश सिप्पी की फिल्म शोले का अपना एक महत्त्व है। प्रदर्शन के शुरूआती दिनों में असफल करार दी गई यह फिल्म धीरे-धीरे दर्शकों की नस-नस में ऐसी बही जैसे रक्त बहता है। प्रदर्शन के 43 साल बाद भी यह फिल्म दर्शकों के दिमाग में ऐसी चलती है जैसे अभी-अभी सिनेमाघर में देखकर आ रहे हैं। फिल्म का एक-एक दृश्य, एक-एक संवाद मुंहजबानी याद है। ऐसे में यदि आपको यह सूचना मिले कि इस फिल्म के एक दृश्य को फिल्माने में रमेश सिप्पी को तीन साल का वक्त लगा तो आप जरूर हैरान होंगे। आज तीन साल में तो निर्माता निर्देशक छह फिल्में बनाकर प्रदर्शित कर देता है। लेकिन वो वक्त और सिनेमा कुछ और था और आज कुछ और है। [ अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे]
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