साहू ने बताया, ‘ग्रामीणों का मगरमच्छ से गहरा लगाव हो गया था। मगरमच्छ ने
दो तीन बार करीब के अन्य गांव में जाने की कोशिश की थी लेकिन हर बार उसे
वापस लाया जाता था। यह गहरा लगाव का ही असर है कि गंगाराम की मौत के दिन
गांव के किसी भी घर में चूल्हा नहीं जला।’ उन्होंने बताया कि लगभग 500
ग्रामीण मगरमच्छ की शव यात्रा में शामिल हुए थे और पूरे सम्मान के साथ उसे
तालाब के किनारे दफनाया गया। ये भी पढ़ें - किंग कोबरा को नचाता है अपने इशारों पर, 3000 बार काट चुके हैं सांप
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