ज्ञात हो कि सन 1576 में ‘हल्दी घाटी’ के युद्ध के दौरान चित्तौड राज्य
अकबर द्वारा छीन लिए जाने के बाद महराणा प्रताप ने अपने बेटे उदय सिंह व
मुख्य सलाहकार भामाशाह के साथ अरावली की पहाडियों पर निर्वासित जीवन गुजारा
था। उनके साथ काफी तादाद में समर्थक भी थे, जिन्हें अब घुमंतू जनजाति
‘पछइहां लोहार’ के नाम से जाना जाता है। ये भी पढ़ें - इस बकरी का स्टंट देख दंग रह जाएंगे आप
महाराणा प्रताप जीते जी अकबर की
दास्ता नहीं स्वीकार की थी, अपने को महाराणा प्रताप का वंशज बताने वाले
पछइहां लोहार विभिन्न कस्बों व देहातों में बैलगाडी और बरसाती के सहारे आज
भी निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
यह कौम हिंदू धर्म को तो मानती है,
पर शादी-विवाहों के रिवाजों में काफी भिन्नता है। वर पक्ष का परिवार कन्या
की खोज करते हैं।
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