टीचर अब उसे स्कूल का ही एक स्टूडेंट मानते हैं और प्यार से ‘रामी’ बुलाते हैं। स्कूल के प्रधानाध्यापक नीलकंठ साहू और सहायक अध्यापक श्रवण मानिकपुरी कहते हैं कि पिछले 9 सालों से हम यहाँ पदस्थ हैं। इतने सालों में कभी ऐसा नहीं हुआ कि यह चिडिय़ा स्कूल नहीं आई। हमारे आने से पहले चिडिय़ा स्कूल में होती है। जब छुट्टी का दिन होता है तो चिडिय़ा स्कूल नहीं आती है। अब वो स्कूल का हिस्सा है। बच्चे भी उसके साथ काफी खुश रहते हैं। लोग भी इस मैना को दूर-दूर से देखने के लिए अब आने लगे हैं। ये भी पढ़ें - कोमा से बाहर आते ही बोलने लगा दूसरे देश की भाषा
आमजन ‘रामी’ को बोलते हैं ‘मैना’
दरअसल, इस चिडिय़ा को आमजन मैना के नाम से जानते हैं। मारीगुड़ा प्राथमिक शाला में रामी सभी बच्चों और अध्यापकों के आने से पहले ही पहुंच जाती है। स्कूल पहुँचने के बाद वह सबसे पहले हैंडपंप के पास जमीन में पड़े पानी में नहाती है। फिर स्कूल परिसर में लगे तिरंगे के नीचे बैठती है और बच्चों के साथ प्रार्थना में शामिल होती है। वह बच्चों के साथ ही क्लास में जाती है। जब टीचर पढ़ाने आते हैं तो टेबल पर बैठ जाती है। छुट्टी होने पर जब बच्चे चले जाते हैं तो चिडिय़ा भी जंगल में उड़ जाती है।
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