नई दिल्ली। कुश्ती एक ऐसा खेल हैं, जहां भारत ने समय के साथ अपनी पकड़ को मजबूत किया है। विश्व पटल पर ईरान, रूस, कोरिया, उजबेकिस्तान, बेलारूस जैसे कुश्ती के दिग्गजों देशों के साथ भारत का नाम भी बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। साल-2018 में भारत की यह ख्याति और मजबूत हुई है और इसका सबसे बड़ा श्रेय पुरुष पहलवान बजरंग पूनिया और महिला पहलवान विनेश फोगाट को जाता है। दोनों ने इस साल इतिहास रचे और बताया कि आने वाले दिनों में भारतीय कुश्ती में यह दोनों अपनी-अपनी श्रेणी में नेतृत्व करने को तैयार हैं। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
ऐसा नहीं है कि इन दोनों ने ही भारतीय कुश्ती का परचम लहराया हो। इन दोनों के अलावा कई युवा खिलाडिय़ों ने भी अपनी छाप छोड़ी। बजरंग ने जो सफलता हासिल की वो हालांकि इन सभी से एक कदम आगे रही। बजरंग ने इस साल अपने स्वार्णिम सफर की शुरुआत ऑस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट में आयोजित राष्ट्रमंडल खेलों से की। जहां ओलम्पिक पदक विजेता योगेश्वर के शिष्य बजरंग ने 65 किलोग्राम भारवर्ग में सोने का तमगा हासिल किया।
इस जीत के बाद बजरंग ने साफ कर दिया था कि अब उनकी नजरें इंडोनेशिया के जकार्ता में होने वाले एशियाई खेलों में अपनी सफलता को दोहराने पर हैं। पूरे देश को भी बजरंग से यही उम्मीद थी। हरियाणा के झज्जर के रहने वाले बजरंग ने उम्मीदों को टूटने नहीं दिया और एशियाई खेलों में भी स्वर्ण पदक अपने नाम कर विश्व पटल पर अपने नाम का डंका बजा दिया। यह बजरंग का एशियाई खेलों में दूसरा पदक था। इससे पहले वह इंचियोन-2014 एशियाई खेलों में रजत पदक जीतकर लौटे थे। बजरंग को हालांकि अभी इस साल की सबसे बड़ी परीक्षा से गुजरना बाकी था।
वो परीक्षा थी विश्व चैम्पियनशिप। विश्व चैम्पियनशिप में बुड़ापेस्ट में बजरंग के स्वार्णिम सफर रूक गया। फाइनल में बजरंग को हार मिली और इस दिग्गज को रजत पदक से ही संतोष करना पड़ा। इस सफलता का बजरंग को ईनाम भी मिला। वह विश्व रैकिंग में अपने भारवर्ग में नंबर-1 बने। वह इस मुकाम को हासिल करने वाले पहले भारतीय थे। इस साल बजरंग अपने प्रदर्शन के अलावा एक और वजह से चर्चा में रहे। भारतीय सरकार द्वारा दिए जाने वाले खेल रत्न की सूची में से बजरंग का नाम नदारद था। बजरंग को इस बात का अफसोस हुआ और उन्होंने इस मुद्दे को खेल मंत्री तक पहुंचाया, लेकिन वह सफल नहीं हो सके।
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