नई दिल्ली। हाल ही संपन्न हुए आईसीसी महिला विश्व कप में फाइनल तक का सफर तय करने वाली भारतीय महिला क्रिकेट टीम की अहम सदस्य स्पिन गेंदबाज एकता बिष्ट शुरुआत में तेज गेंदबाज बनना चाहती थीं और इसके लिए वे प्लास्टिक की गेंद से अभ्यास करती थीं। लेकिन समय ने करवट ली और उनके कोच ने उन्हें अकादमी में स्पिन के गुर सिखाना शुरू किया। इस बदलाव ने उनके करिअर में नया मोड़ ला दिया और अपनी इसी फिरकी के दम पर एकता ने इंग्लैंड में हुए आईसीसी विश्व कप में चिर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान के खिलाफ पांच विकेट लेकर टीम को जीत दिलाई। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
यह भारतीय महिलाओं की इस विश्व कप में लगातार तीसरी जीत थी जिसमें उसने पाकिस्तान को 95 रनों से मात दी थी। उत्तराखंड के छोटे से शहर अल्मोड़ा की रहने वाली एकता ने विश्व कप में अपनी फिरकी से कई मैच जिताए और टीम को फाइनल तक पहुंचाया। राष्ट्रीय राजधानी में भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) ने दूसरी बार फाइनल में पहुंचने वाली महिला टीम का गुरुवार को सम्मान किया। इस मौके पर पूरी टीम मौजूद रही।
एकता ने इस मौके पर आईएएनएस को बताया कि वे शुरुआती दिनों में प्लास्टिक की गेंद से क्रिकेट खेलती थीं और तेज गेंदबाजी के अलावा बल्लेबाजी भी करती थीं। एकता ने बचपन के दिनों को याद करते हुए कहा, जब मैं प्लास्टिक की गेंद से खेलती थी तब बल्लेबाजी अच्छी करती थी और तेज गेंदबाजी करती थी। लेकिन जब मैं सर (लियाकत अली) के पास गई तो उन्होंने मुझे स्पिन गेंदबाजी करने की सलाह दी और प्रशिक्षित किया। उत्तराखंड के छोटे से शहर अल्मोड़ा से क्रिकेट का सफर शुरू करने वाली एकता को काफी संघर्ष के बाद नीली जर्सी मिली।
अपने संघर्ष पर वे कहती हैं, प्रोफेशनल क्रिकेट पिच का न होना, छोटी सी जगह से बाहर आना, एक मैदान में खेलना जहां सभी खेल होते हैं। कभी हॉकी की गेंद लग रही है तो कभी किसी की गेंद लग रही है। खेलने में काफी दिक्कतें तो आईं, लेकिन अगर आपके पास सपोर्ट हो तो इन बातों पर ध्यान कम जाता है। मेरे कोच ने इन सब से मुझे दूर रखा।
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