यहां दीपक की लौ के रूप में आकर स्थापित हुईं मां चामुंडा

www.khaskhabar.com | Published : शनिवार, 01 अक्टूबर 2016, 11:06 AM (IST)

जोधपुर। शक्ति रूपिणी मां चामुंडा दीपक की लौ के रूप में आकर जोधपुर के एक पहाड़ पर स्थापित हुई और उसके बाद रियासत के महाराजा ने यहां मंदिर बनवाया। कहते हैं राव चूंडा मां चामुंडा के भक्त थे और वो मां के दर्शन किए बगैर भोजन नहीं लेते थे। इस तरह मां की भक्ति पीढ़ी दर पीढ़ी चली और मंडोर रियासत के तत्कालीन महाराजा राव जोधा ने मेहरानगढ़ की स्थापना की। जानकर बताते हैं कि ये बात दन्तकथा मानी जाती है, लेकिन सच है कि राव जोधा भी मां के भक्त थे और मां को सच्चे मन से याद करते थे। जनश्रुति में कहा जाता है कि राव जोधा भी अपने पूर्वजों की तरह मां के दर्शन करने के बाद ही भोजन ग्रहण करते थे।

राव जोधा की भक्ति से प्रसन्न हुई मां

जब मां चामुण्डा राव जोधा की भक्ति से प्रसन्न हुई तब सालोडी की नदी की दूसरी तरफ पहाड़ी पर मां चामुण्डा के मंदिर से दीपक की लौ के रूप में रवाना हुई और मेहरानगढ़ में मौजूदा मंदिर की जगह आकर रुकी। इसके बाद राव जोधा ने यहां मां के मंदिर की स्थापना की।

लौ के रूप में 40 किलोमीटर चलीं मां चामुंडा

जानकार बताते है कि मां चामुंडा वर्तमान जोधपुर से 40 किलोमीटर दूर चामुण्डा मंदिर से दीपक की लौ के रूप में यहां आकर विराजमान हुईं। चामुण्डा गांव शहर से 40 किलोमीटर पश्चिम में बसा है, जहां पहले बारहमासी नदी प्रवाहित होती थी। रियासतकाल में यहां सभ्यता का विकास होना माना जाता है।