कलाकार: रितेश देशमुख, नरगिस फाखरी, धर्मेश येलंडे, आदित्य कुमार, ल्यूक केनी, मोहन कपूर
निर्देशक : रवि जाधव
निर्माता: कृषिका लुल्ला, वासु भगनानी
लेखक-संवाद: कपिल सावंत, रवि जाधव, निखिल मल्होत्रा
संगीत: विशाल-शेखर
गीत : अमिताभ भट्टाचार्य
इस सप्ताह बॉक्स ऑफिस पर आधा दर्जन फिल्मों का प्रदर्शन हुआ लेकिन उनमें ऐसी कोई नहीं थी जिसे देखने का मन करे। फिर भी कुछ अच्छे नामों रितेश देशमुख, नरगिस फाखरी, कृषिका लुल्ला, वासु भगनानी, रवि जाधव, अमिताभ भट्टाचार्य, विशाल-शेखर को देखते हुए ‘बैंजो’ को देखा। फिल्म देखकर निराशा हाथ लगी। पूरी तरह से संगीत पर आधारित इस फिल्म में एक भी गीत ऐसा नहीं है जो दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित कर सके। गीत अमिताभ भट्टाचार्य और संगीतकार विशाल शेखर के गीत संगीत को सुनकर ऐसा लगता है जैसे उन्होंने किसी दबाव में इसे तैयार किया है।
रवि जाधव मराठी फिल्मों का जाना माना नाम है। इनके द्वारा निर्देशित
फिल्मों को बॉक्स ऑफिस पर भारी सफलता मिलने के साथ ही कई पुरस्कार भी
प्राप्त करती रही हैं। ऐसे निर्देशक से बॉलीवुड को बहुत उम्मीदें थी लेकिन
बैंजों देखकर महसूस हुआ इस तरह की फिल्में तो यहां के कई निर्देशक चंद
दिनों में बना सकते हैं। न फिल्म की कहानी में दम है न संगीत में और
संवादों की बात तो छोडिए। किरदारों का चित्रण भी कमजोर है। फिल्म का नायक
टाइमपास करने के लिए संगीत में रुचि रखता है वैसे वह गुण्डा है। ऐसे में दर्शक किस तरह उसके साथ जुड सकता है। जिस धुन को सुनकर अमेरिका से नायिका भारत आती है, जिस संगीत की उसे तलाश है उसी का यहाँ अभाव है। अन्त तक यह समझ में नहीं आता है कि उसे किस प्रकार के संगीत की तलाश है।
पूरी फिल्म का दारोमदार रितेश देशमुख पर है। एक कमजोर अभिनेता पर बडी जिम्मेदारी डाल दी गई। रितेश ने अपने किरदार को ओवरडोज कर दिया है। जबकि उन्हें इस किरदार को निभाने के लिए अण्डरप्ले करना चाहिए। जाधव ने क्यों कर उसने ओवर एक्ट करवाया यह तो वही बता सकते हैं। शेष कलाकार निराश करते हैं। फिल्म का छायांकन जरूर कहीं-कहीं प्रभावित करता है। कुछ दृश्य अच्छे हैं जिनको देखकर फिल्म देखने का मन करता है। वैसे पूरी फिल्म निराश करती है।