कानपुर। हिंदू सनातन धर्म में हर प्रकार के अवसरों के
लिए जहां पर्व है तो वहीं माता-पिता व पूवजनों की याद करने तथा उन्हे सम्मान देने
के लिए श्राद्ध पक्ष जैसे अवसर दिए गये हैं तर्पण व श्राद्ध के इस काल में पितृों
को खुश किया जाता है तथा तालाबों, घाटों
पर यह सिलसिला जारी है। मातृ नवमी आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को कहा
जाता है।
नवमी तिथि का श्राद्ध पक्ष में बहुत ही महत्व है। सनातन धर्म की मान्यता के अनुसार श्राद्ध करने के लिए एक पूरा पखवाडा ही निश्चित कर दिया गया है। सभी तिथियां इन सोलह दिनों में आ जाती है। कोई भी पूर्वज जिस तिथि को इस लोक को त्यागकर परलोग गया हो, उसी तिथि को इस पक्ष में श्राद्ध किया जाता है, लेकिन स्त्रियों को इस पक्ष में भी विशेष स्थान दिया गया है तथा स्त्रियों के लिए नवमी तिथि विेशेष मानी गयी है जिसे मातृ नवमी भी कहा जाता है।
मातृ नवमी के दिन पुत्रवधुएं अपनी स्वर्गवासी सास व
माता के सम्मान के लिए श्रद्धाजंलि अर्पण करती है और धार्मिक कृत्य करती है। इस
दिन पति के रहते संसार छोडने वाली महिलाओं का श्राद्ध किया जाता है। साथ ही कुल
में सभी दिवंगत हुई महिलाओं का भी इसी दिन श्राद्ध करने का प्रावधान है।
अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि पर पितृगणों
की प्रसन्नता हेतु नवमी का श्राद्ध किया जाता है। यह तिथि माता और परिवार की
विवाहित महिलाओं के श्राद्ध के लिए श्रेष्ठ मानी जाती हैं। कुछ स्थानों पर इसे
डोकरा नवमी भी कहा जाता है नवमी तिथि का श्राद्ध मूल रूप से माता के निमित्त किया
जाता है। पुत्रवधुएं व्रत भी रखती है। यदि उनकी सास अथवा माता जीवित नही है तो।
शास्त्रानुसार नवमी का श्राद्ध करने पर श्राद्धकर्ता को धन, सम्पत्ति व ऐश्वर्य प्रापत होता है तथा सौभाग्य बना रहता हैं
नवमी के दिन श्राद्ध में पांच ब्राम्हणों और एक ब्राम्हणी को भोजन करवाने का विधान है। सर्व प्रथम नित्यकर्म से निवृत्त होकर घर की दक्षिण दिशा में हरा वस्त्र बिछा कर चित्र या प्रतीक हरे वस्त्र पर स्थापित कर उनके निमित, तिल के तेल का दीपक जलाएं, धूप कंरे, जल में मिरी और तिल मिलाकर तर्पण करने तथा अपने पितरों के समक्ष तुलसी पत्र समर्पित करने का प्रावधान है साथ ही भागवत गीता के नवें अध्याय का पाठ करना चाहिए। ब्राम्हणों को भोजन के उपरान्त यथाशक्ति वस्त्र, धन, दक्षिणा देकर उनको विदा करने से पूर्व आर्शीवाद ग्रहण करना चाहिये।