नागौर। नागौर जिले का शिव गांव शिव व शक्ति की आस्था का संगम स्थल है। विक्रमी संवत 1705 में बसा यह गांव वीरता व अध्यात्म का शक्तिपुंज रहा है। आज से करीब 200 वर्ष पूर्व जब इस क्षेत्र में भयंकर विषधरों का बाहुल्य था तब इनके विष को प्रभावहीन करने के लिए इस गांव के शिवदान सिंह तपस्वी सहजराम बाबा के आशीर्वाद से मणिधारी नाग से मणि छीन कर लाए थे, जिससे सांप के काटने पर इलाज किया जाता है। आगे देखिए नागमणि जो मंदिर में रखी है...
बाबा ने खुश होकर दिया वरदान
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गांव के बुजुर्ग भोमदान सांदू के अनुसार आज से लगभग दौ सौ वर्ष पूर्व
गांव में सांप व अन्य जहरीले जानवरों का काफी प्रकोप था। उस वक्त आज की तरह
इलाज व यातायात के साधनों के अभाव के कारण मरीज की मौत भी हो जाती थी। तब
ऐसी स्थिति में गांव के बाहर टीले पर तपस्वी सहजराम बाबा ने अपनी धूनी रमाई
व तप करने लगे। गांव के ही शिवदान सिंह उनकी सेवा करने लगे। अंत में बाबा
ने कहा की अब वो जल्दी ही यहां से प्रस्थान कर जाएंगे। अंत अपनी सेवा के
बदले मैं तुम्हें कुछ वरदान देना चाहता हूं। तुम कुछ भी मांग सकते हो। आगे
देखिए नागमणि जो मंदिर में रखी है...
बाबा से मांगी नागमणि
तब
शिवदान सिंह ने लोकहित के लिए नागमणि मांगी। बाबा ने उन्हें अमावस्या के
दिन तेज गति से दौडऩे वाला घोडा व लोहे के कीलों वाली बड़ी तगारी लेकर आने
को कहा। बाबा ने कहा कि जब नाग अंधेरे में मणि रख कर उसके प्रकाश में अपना
भोजन ढूंढ रहा हो, तब मणि उठा कर घोड़े पर निकल जाना। बाबा के बताए अनुसार
करने पर भी नाग ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। तब हार कर शिवदान बाबा की शरण में
आए। आगे देखिए नागमणि जो मंदिर में रखी है...
बाबा हुए नाग पर कुपित
इस पर बाबा नाग पर कुपित हो गए व उसे फटकार लगाई। नाग ने आत्मग्लानि व मणि के बिछोह में प्राण त्याग दिए। गांव के बाहर टीले पर आज भी सहजराम बाबा का स्थान बना है। मणि आज भी गांव में सहेज कर रखी हुई है। हालांकि आधुनिक युग में मणि की उपयोगिता कम हो गई है।