होलाष्टक: अष्टमी से पूर्णिमा तक सभी ग्रह रहेंगे उग्र, शुभ कार्य वर्जित

www.khaskhabar.com | Published : रविवार, 18 फ़रवरी 2018, 12:05 PM (IST)

जयपुर। फागुन का महीना चल रहा है। फागुन माह में होली से पहले होलाष्टक लगते हैं। इस बार होलाष्टक 7 दिनों के हैं। आमतौर पर 8 दिनों के रहते हैं। होलाष्टक के 7 दिनों में कोई शुभ कार्य नहीं हो सकेंगे। होलिका दहन के साथ ही होलाष्टक समाप्त हो जाएगा।

शास्त्रों में वर्णित कथनों के अनुसार होलाष्टक के दौरान ग्रहों का स्वभाव उग्र रहता है। सभी 9 ग्रह फाल्गुन शुक्ल अष्टमी ( 23 फरवरी) से पूर्णिमा (1 मार्च) तक उग्र रहेंगे। शुभ कार्य इसलिए नहीं हो सकेंगे, क्योंकि सभी शुभ व मांगलिक कार्यों के लिए ग्रहों का सौम्य होना जरूरी है।

होलाष्टक के दिनों में ग्रहों के उग्र होने की वजह से नया व्यापार, गृह प्रवेश, विवाह, गर्भाधान, वाहन क्रय, जमीन व मकान की खरीदारी सहित अन्य मांगलिक कार्य वर्जित रहेंगे।


ये ग्रह इन तिथियों पर रहेंगे उग्र

अष्टमी 23 फरवरी को चंद्र ग्रह।
नवमी 24 फरवरी को सूर्य ग्रह।
दशमी 25 फरवरी को शनि ग्रह।
एकादशी 26 फरवरी शुक्र।
द्वादशी 27 फरवरी को गुरु।
त्रयोदशी 28 फरवरी को बुध।
चतुर्दशी 01 मार्च को मंगल ग्रह।
पूर्णिमा 01 मार्च को ही राहू ग्रह।


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क्या है होलाष्टक... जानें
शास्त्रों के अनुसार कामदेव ने जब भगवान शिव की तपस्या भंग की थी, इस कारण शिवजी ने क्रोधित होकर तीसरे नेत्र की ज्वाला से कामदेव को भस्म कर दिया था। कामदेव ने देवताओं की इच्छा और उनके अच्छे के लिए शिव को तपस्या से उठाया था। कामदेव के भस्म होने से सारा संसार शोक में डूब गया था। काम देव की उनकी पत्नी रति ने शिव से विनती की वे उन्हें फिर से पुनर्जीवित कर दे। तब भोलेनाथ ने द्वापर में उन्हें फिर से जीवन देने की बात कही। शिव तपस्या भंग होने की कालावधि होलाष्टक कहलाती है।

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बच्चों का ढूंढ पूजन

होलाष्टकों के दिनों में छोटे बच्चों के ढूंड पूजन की परंपरा है। मान्यता है कि इन दिनों में ढूंड पूजन से बच्चों की लंबी आयु, उत्तम स्वास्थ्य, अच्छी शिक्षा, समर्थवान व ऐश्वर्यवान बनते हैं। पूजन में बच्चों को बुराई से बचाने की भी कामना की जाती है।

बच्चे के जन्म के साल ढूंढ पूजी जाती है। यह फाल्गुन शुक्ल पक्ष की ग्यारस के दिन पूजी जाती है। कुछ लोग होली वाले दिन ढूंढ पूजते हैं। बच्चे को गोद में लेकर होली की परिक्रमा लगाई जाती है ताकि वह बुरी नजर आदि से बचा रहे। ढूंढ का सामान पीहर से या बुआ के घर से आता है। बच्चे की माँ को पीले का बेस , बताशे , फल , मिठाई , फूले , रूपये आदि दिए जाते है तथा बच्चे को सफ़ेद रंग के कपड़े दिए जाते है। परिवार के सभी सदस्य इकठ्ठा होते है। ढूंढ पूजन के समय माँ पीले का बेस पहन कर बच्चे को गोद में लेकर बैठती है। नई माँ द्वारा थाली में बताशे , फल , रूपये आदि रखकर रोली चावल लगाकर सासु माँ को दिए जाते है और उनका आशीर्वाद लिया जाता है। नई माँ और बच्चे को परिवार के सदस्य उपहार आदि देकर सुखद भविष्य की कामना करते हैं।

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