आप के 20 विधायकों की सदस्यता जाना तय, राष्ट्रपति लगाएंगे मुहर

www.khaskhabar.com | Published : शनिवार, 20 जनवरी 2018, 10:26 AM (IST)

नई दिल्ली। चुनाव आयोग की ओर से आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों को अयोग्य घोषित करने की सिफारिश किए जाने के बाद दिल्ली की राजनीति में भूचाल सा आ गया है। एक ओर आप काफी नाराज नजर आ रही है। वहीं, बीजेपी और कांग्रेस में खुशी की लहर दौड पड़ी है। बीजेपी और कांग्रेस आगामी विधानसभा चुनाव में जीत की आस लगा रही है। अगर आप के 20 विधायकों की सदस्यता रद्द होती है, तो दिल्ली में इन सीटों पर फिर से चुनाव होंगे। हालांकि, चुनाव आयोग की सिफारिश के तुरंत बाद आप विधायकों ने हाई कोर्ट में गुहार लगाई। लेकिन, हाई कोर्ट से झटका मिलने के बाद अब राष्ट्रपति आप के 20 विधायकों की किस्मत पर फैसला ले सकते है।

आयोग की राय पर दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा स्टे देने से इनकार करने के बाद आज राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद इस मसले पर कोई आदेश जारी कर सकते हैं। अगर चुनाव आयोग की सिफारिश पर राष्ट्रपति की मुहर लग जाती है तो आप के 20 विधायकों की सदस्यता रद्द हो जाएगी। ऐसी स्थिति में भी आप की सरकार बरकरार रहेगी। 70 सीटों वाली दिल्ली विधानसभा में इस वक्त आप के 66 विधायक हैं और बीजेपी के 4 विधायक हैं। अगर आप के 20 विधायकों की सदस्यता रद्द हो जाती है तो विधायकों की संख्या 46 होगी और बहुमत के लिए 36 विधायक चाहिए। ऐसे में केजरीवाल सरकार को कोई खतरा नहीं है।

लेकिन, जिस दिन राष्ट्रपति विधायकों को अयोग्य घोषित करने की सिफारिश को मंजूर करेंगे, उसके छह महीने तक चुनाव करवाए जा सकते हैं लेकिन आप विधायकों ने आयोग की सिफारिश को हाई कोर्ट में चुनौती दे दी है और एक्सपट्र्स का कहना है कि अभी लंबी कानूनी लड़ाई होगी। ऐसे में कहा नहीं जा सकता कि उपचुनाव कब तक होंगे? जिन विधायकों को अयोग्य घोषित करने की सिफारिश की गई है उनमें अलका लांबा, आदर्श शास्त्री, संजीव झा, राजेश गुप्ता, कैलाश गहलोत, विजेंदर गर्ग, प्रवीण कुमार, शरद कुमार, मदन लाल खुफिया, शिव चरण गोयल, सरिता सिंह, नरेश यादव, राजेश ऋषि, अनिल कुमार, सोम दत्त, अवतार सिंह, सुखवीर सिंह डाला, मनोज कुमार, नितिन त्यागी और जरनैल सिंह (तिलक नगर) शामिल हैं।


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पिछले साल अक्टूबर में निर्वाचन आयोग ने आप विधायकों की वह याचिका खारिज कर दी थी, जिसमें उन्होंने अपने खिलाफ लाभ के पद का मामला खत्म करने का आग्रह किया था। आयोग ने आप विधायकों को नोटिस जारी कर इस मामले पर स्पष्टीकरण मांगा था। आप सरकार ने मार्च 2015 में दिल्ली विधानसभा सदस्य (अयोग्यता निवारण) अधिनियम, 1997 में एक संशोधन पारित किया था, जिसमें संसदीय सचिव के पदों को लाभ के पद की परिभाषा से मुक्त करने का प्रावधान था। लेकिन, तब राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उस संशोधन को स्वीकृति देने से इनकार कर दिया था। इसके बाद दिल्ली उच्च न्यायालय ने सितंबर 2016 में सभी नियुक्तियों को अवैध करार देते हुए रद्द कर दिया। न्यायालय ने कहा था कि संसदीय सचिव नियुक्त करने के आदेश उप राज्यपाल की मंजूरी के बगैर जारी किए गए थे।

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