चमत्कारी है रुद्राक्ष, सभी तरह दुखों को दूर करने की ताकत रखता है

www.khaskhabar.com | Published : मंगलवार, 16 जनवरी 2018, 12:33 PM (IST)

महादेव के सभी भक्तों को रुद्राक्ष धारण करना बेहद जरूरी है। पुराणों के अनुसार रुद्राक्ष की उत्पति के सम्बन्ध में कहा गया है कि एक बार भगवान आशुतोष शंकर जी ने देवताओं एवं मनुष्यो के हित के लिए असुर त्रिपुरासुर का वध करना चाहा और एक सो वर्षो तक तपस्या की। भगवान के मनोहर नेत्रों से आंसू गिरे उन्हीं आंसुओं से रुद्राक्ष के महान वृक्षों की उत्पति हुई| कहते हैं रूद्राक्ष को धारण करने वाला जातक हर तरह के अमंगल से दूर रहता है। कहते हैं, जो पूरे नियमों का ध्यान रख श्रद्धापूर्वक रुद्राक्ष को धारण करता है, उनकी सभी कष्ट दूर होते हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं। कहा जाता है कि जिन घरों में रुद्राक्ष की पूजा होती है, वहां मां लक्ष्मी का वास होता है। यह भगवान शंकर की प्रिय चीज मानी जाती है।

शिवपुराण, लिंगपुराण, एवं सकन्द्पुराण आदि में इस का विशेष रूप से वर्णन किया हुआ है|

रुद्राक्ष का स्पर्श, दर्शन, उस पर जप करने से, उस की माला को धारण करने से समस्त पापो का और विघ्नों का नाश होता है ऐसा महादेव का वरदान है, परन्तु धारण की उचित विधि और भावना शुद्ध होनी चाहिए|

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भोग और मोक्ष की इच्छा रखने वाले चारो वर्णों के लोगों को विशेष कर शिव भगतो को शिव पार्वती की प्रार्थना और प्रसंता के लिए रुद्राक्ष जरुर धारण करना चाहिए|

आवले के फल के सामान रुद्राक्ष समस्त अरिष्टो का नाश करने वाला होता है|

बेर के सामान छोटा दिखने वाला रुद्राक्ष सुख और सौभाग्य कीं वृधि करने वाला होता है|

रुद्राक्ष की माला से मंत्र जाप करने से अनंत गुना फल मिलता है|

जिस माला में अपने आप धागा पिरोया जाने योग्य छेद हो वह उत्तम होता है, प्रयत्न कर के धागा पिरोया जाये तो वह माध्यम श्रेणी का रुद्राक्ष होता है|

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शुभ महूर्त में धारण करें रूद्राक्ष
मेष संक्रांति, पूर्णिम, अक्षय त्रितय, दीपावली, चैत्र शुक्ल , प्रतिपदा, अयन परिवर्तन काल ग्रहण काल, गुरु पुष्य, रवि पुष्य, द्वि और त्रिपुष्कर योग में रुद्राक्ष धारण करने से समस्त पापों का नाश होता है|
धारण विधि
यदि किसी कारण वश रुद्राक्ष विशेष मंत्रो से धारण न कर सके तो सरल विधि से लाल धागे में पिरो कर गंगा जल से स्नान करा कर “ का जाप कर के चन्दन विल्व पत्र लाल पुष्प, धुप, दीप, दिखा कर “ॐ तत्पुरुशाये विदमहे महादेवाये धिमिही तन्नो रुद्र:प्रचोदयात”अभिमंत्रित कर के धारण करे और यथा शक्ति दान ब्राहमण को देवे|

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