सुप्रीम कोर्ट के चार जजों की चिट्ठी से मचा हड़कंप, CJI पर लगाए ये आरोप

www.khaskhabar.com | Published : शुक्रवार, 12 जनवरी 2018, 3:00 PM (IST)

नई दिल्ली। भारत के इतिहास में पहली बार सुप्रीम कोर्ट के 4 जजों ने शुक्रवार को मीडिया के सामने आकर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की प्रशासनिक कार्यशैली पर सवाल उठाए। सुप्रीम कोर्ट के चार न्यायधीशों ने शुक्रवार को कहा कि देश के सुप्रीम कोर्ट का प्रशासन सुचारू रूप से काम नहीं कर रहा है। वरिष्ठता के आधार पर सुप्रीम कोर्ट में दूसरे नंबर के न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे. चेलमेश्वर के आवास में बुलाई संवाददाता सम्मेलन में न्यायाधीशों ने कहा, जिस बात से वे दुखी हैं उसकी जानकारी सार्वजनिक करने में उन्हें कोई खुशी नहीं हो रही है। प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद चारों जजों ने एक चिट्ठी जारी की, जिसमें गंभीर आरोप लगाए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को संबोधित 7 पन्नों के पत्र में जजों ने कुछ मामलों के असाइनमेंट को लेकर नाराजगी जताई है।

जानें-चिट्ठी में जजों ने क्या लिखा?

चिट्ठी में जजों ने लिखा कि हम बेहद कष्ट के साथ आपके समक्ष यह मुद्दा उठाना चाहते हैं कि अदालत की ओर से दिए गए कुछ फैसलों से न्यायपालिका की पूरी व्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई है। इसके अलावा उच्च न्यायालयों की स्वतंत्रता भी प्रभावित हुई है। इसके अलावा भारत के मुख्य न्यायाधीश के कार्यालय के कामकाज पर भी असर पड़ा है। जजों ने लिखा, स्थापना के समय से ही कोलकाता, बॉम्बे और मद्रास हाई कोर्ट में प्रशासन के नियम और परंपरा तय थे। इन अदालतों के कामकाज पर सुप्रीम कोर्ट के फैसलों ने विपरीत प्रभाव डाला है, जबकि शीर्ष अदालत की स्थापना तो खुद इन उच्च न्यायालयों के एक सदी के बाद हुई थी।

सामान्य सिद्धांत है कि चीफ जस्टिस के पास रोस्टर तैयार करने का अधिकार होता है और वह तय करते हैं कि कौन सी बेंच और जज किस मामले की सुनवाई करेगी। हालांकि यह देश का न्यायशास्त्र है कि चीफ जस्टिस सभी बराबर के जजों में प्रथम होता है, न ही वह किसी से बड़ा और न ही छोटा होता है।


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जजों ने आगे लिखा, ऐसे भी कई मामले हैं, जिनका देश के लिए खासा महत्व है। लेकिन, चीफ जस्टिस ने उन मामलों को तार्किक आधार पर देने की बजाय अपनी पसंद वाली बेंचों को सौंप दिया। इसे किसी भी कीमत पर रोका जाना चाहिए। यह संस्थान की प्रतिष्ठा को हानि न पहुंचे, इसलिए मामलों का जिक्र नहीं कर रहे हैं, लेकिन इसकी वजह से पहले ही न्यायपालिका की संस्था की छवि को नुकसान हो चुका है।

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