ट्रिपल तलाक पर होगी  3 साल की जेल, जानें इस कानून की खास बातें

www.khaskhabar.com | Published : शुक्रवार, 15 दिसम्बर 2017, 8:42 PM (IST)

नई दिल्ली। मुस्लिम समुदाय में तीन तलाक को अपराध की श्रेणी में रखने और ऐसा करने पर तीन वर्ष कारावास के प्रावधान वाले विधेयक को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने शुक्रवार को मंजूरी दे दी और सरकार ने कहा कि इस विधेयक का उद्देश्य मुस्लिम समुदाय में महिलाओं की गरिमा व सुरक्षा को संरक्षित करना है। मुस्लिम महिला(विवाह संरक्षण अधिकार) विधेयक, 2017 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आयोजित मंत्रिमंडल की बैठक में मंजूरी दी गई। उन्होंने गुजरात चुनाव अभियान के दौरान भी इस मुद्दे को उठाया था।

कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने संवाददाता सम्मेलन में संसद सत्र जारी रहने का हवाला देकर इस विधेयक के बारे में विस्तृत जानकारी देने से इंकार कर दिया। उन्होंने हालांकि कहा कि जिन भी राज्य सरकारों को इस विधेयक के मसौदे को भेजा गया, उन्होंने इसका समर्थन किया। इस माह के प्रारंभ में राज्यों को भेजे गए मसौदा विधेयक के अनुसार, इसमें प्रस्तावित है कि तीन तलाक को संज्ञेय व गैर-जमानती अपराध बनाया जाए जिसके तहत तीन वर्ष कारावास का प्रावधान है। यह मसौदा कानून सर्वोच्च न्यायालय की ओर से 22 अगस्त को दिए गए निर्णय के आधार पर तैयार किया गया है, जिसमें तीन तलाक को अवैध बताया गया था।

हालांकि यह ज्ञात है कि विधेयक में तीन वर्ष की सजा का प्रावधान है और अगर कोई मुस्लिम व्यक्ति तीन तलाक का प्रयोग करता है तो उसपर जुर्माना भी लगाया जाएगा। इस मामले को सर्वोच्च न्यायालय की पांच सदस्यीय पीठ ने ‘असंवैधानिक व मनमाना’ बताया था। अदालत ने यह भी कहा था कि तीन तलाक इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है। विधेयक में तत्काल तलाक को संज्ञेय व गैर-जमानती अपराध बनाने के अलावा, पीडि़त महिलाओं को भरण पोषण की मांग करने का अधिकार दिया गया है। संसद के शीत सत्र में इस विधेयक को पेश किए जाने की उम्मीद है।

विधेयक के बारे में ज्यादा जानकारी देने से इंकार करते हुए प्रसाद ने कहा कि इसे तीन तलाक की पीडि़ता की रक्षा और उन्हें सम्मान व सुरक्षा देने के उद्देश्य से तैयार किया गया है।

उन्होंने कहा, ‘‘मंत्रिमंडल ने आज(शुक्रवार) ऐतिहासिक फैसला लिया है, जिसका देश की प्रगति में दीर्घकालिक असर पड़ेगा, क्योंकि संसद सत्र चल रहा है, इसलिए मैं विधेयक के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं दे सकता।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हमने मुस्लिम महिला(विवाह संरक्षण अधिकार) विधेयक, 2017 को मंजूरी दी, जो तीन तलाक की पीडि़ता की रक्षा के लिए है।’’

अखिल भारतीय मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने मंत्रिमंडल द्वारा तीन तलाक पर विधेयक को मंजूरी दिए जाने पर मुस्लिम समुदाय की धार्मिक स्वतंत्रता पर सीधा हमला बताया है, जबकि महिला कार्यकर्ताओं ने इस विधेयक को कानून बनाने के लिए राजनीतिक पार्टियों से समर्थन मांगा है।

विधेयक का विरोध करते हुए एआईएमपीएलबी के सदस्य मौलाना खालिद राशिद ने कहा, ‘‘जहां तक महिलाओं को मुआवजा देने का सवाल है, वह मुस्लिम समुदाय द्वारा दिया जाता है। इसलिए हमें लगता है कि तीन तलाक विधेयक समुदाय के धार्मिक मामलों में सीधा हस्तक्षेप है। यह धार्मिक स्वतंत्रता पर एक हमला है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘महिलाओं को तीन तलाक के नाम पर प्रताडि़त नहीं किया जाता है। मुस्लिम महिलाओं ने कहा है कि वे पर्सनल लॉ समेत तीन तलाक पर किसी भी तरह का बदलाव नहीं चाहती हैं। अगर कुछ लोग कुछ कानून का दुरुपयोग करते हैं, तो इसका मतलब यह नहीं है कि आप कानून ही खत्म कर देंगे। यह हमारे ‘शरिया’ का हिस्सा है। सरकार को कम से कम इस तरह के कानून बनाने से पहले एक बार मुस्लिम संगठनों से संपर्क करना चाहिए था।’’

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समाजिक कार्यकर्ता जाकिर सोमन ने कहा, ‘‘मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और मुस्लिम समुदाय तीन तलाक पीडि़ता की समुचित देखभाल नहीं करता, इसलिए ऐसी महिलाओं को कानून के हिसाब से न्याय दिया जाना चाहिए।’’ सोमन ने सवाल करते हुए कहा, ‘‘अगर मुस्लिम समुदाय और बोर्ड ने महिलाओं के लिए कुछ किया होता तो वे महिलाएं महिला संगठन में क्यों आती?’’

कार्यकर्ता ने कहा, ‘‘समुदाय बहस में उलझा हुआ है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम अपने संवैधानिक व कानूनी अधिकार छोड़ दें। हम सभी लोकतंत्र में नागरिक है और 21वीं शताब्दी में रह रहे हैं। हम शिक्षित हैं, सशक्त हैं और हम कानून के आधार पर न्याय चाहते हैं। इसलिए पर्सनल लॉ बोर्ड का किसी भी तरह के सुधार का बहस स्वीकार नहीं है।’’

सोमन ने बताया, ‘‘उनलोगों ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी समेत पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, माकपा महासचिव सीताराम येचुरी को इस विधेयक को कानून बनाने को लेकर समर्थन देने के लिए पत्र लिखा है।’’

एक अन्य सामाजिक कार्यकर्ता हीना जहीर ने कहा, ‘‘कुरान के अनुसार, तत्काल तलाक का कोई प्रावधान नहीं है। इसलिए, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को इसे अहंकार का प्रश्र नहीं बनाना चाहिए। बोर्ड को इसे खुद में सुलझाना चाहिए था। उन्होंने इसे नहीं सुलझाया। इसलिए इस मुद्दे पर बहुत ज्यादा राजनीति हुई।’’
--आईएएनएस

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