देश की पहली महिला चिकित्सक के बारे में कुछ रोचक, अनजानी बातें

www.khaskhabar.com | Published : बुधवार, 22 नवम्बर 2017, 12:30 PM (IST)

नई दिल्ली। सर्च इंजन गूगल डूडल डॉ रुखमाबाई के 153वें जन्मदिन मना रहा है। तस्वीर में दिख रही महिला डॉ रुखमाबाई ब्रिटिश शासन में प्रैक्टिस करने वाली पहली महिला चिकित्सक थी। रुखमाबाई ने समाज की बुराईयों के खिलाफ भी लडाई लडी। जबकि रुखमाबाई खुद बाल विवाह का दंश झेल चुकी थी। साथ ही उन्होंने महिलाओं के साथ शारीरिक संबंध बनाने की उम्र को लेकर भी आवाज उठाई। रुखमाबाई का जन्म मुंबई में 22 नवंबर, 1864 को हुआ था। 11 वर्ष की उम्र में ही उनका विवाह 19 साल के दादाजी भीकाजी राउत से कर दिया गया। लेकिन रुखमाबाई ने अपने ससुराल जाने से इंकार कर दिया। शादी के बाद भी वह अपनी माता आरै सौतेले पिता के साथ उनके घर में रही।

शादी के 7 वर्ष बाद दादाजी भीकाजी राउत कोर्ट में गए और गुहार लगाई कि उनकी पत्नी को उनके साथ रहने का आदेश दिया जाए लेकिन रुखमाबाई ने दादाजी भीकाजी के साथ जाने से इंकार कर दिया। रुखमाबाई ने कोर्ट से कहा कि शादी का रिश्ता तब तक परिपूर्ण नहीं हो सकता जब तक महिला की खुद उसमें रुचि ना हो। रुखमाबाई ने तर्क दिया कि वह इस शादी को नहीं मान सकती, क्योंकि उसकी शादी ऐसी उम्र में हुई थी, जब वह अपनी सहमति नहीं दे पाई थी। इस तर्क को किसी भी अदालत में पहले कभी नहीं सुना था। इस केस में रुखमाबाई के सौतेले पिता ने उनकी काफी मदद की। उनका मुकदमा तीन वर्ष तक चला। इसके बाद कोर्ट ने फैसला दादाजी के पक्ष में सुनाते हुए उनको पति के साथ रहने का आदेश दिया।

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कोर्ट ने आदेश दिया कि या तो रुखमाबाई अपने पति के साथ जाए या 6 माह की जेल होगी। इसके बावजूद रुखमाबाई अपने फैसले पर अडिग रही। जब मामला काफी चर्चित हो गया तो क्वीन विक्टोरिया को इसमें हस्तक्षेप करना पडा। क्वीन विक्टोरिया कोर्ट के फैसले का विरोध किया। इस विरोध ने गर्वमेंट को 1891 में संधि अधिनियम की आयु पारित करने के लिए प्रेरित किया। इसके बाद रुखमाबाई ने टाइम्स ऑफ इंडिया में हिंदू लेडी के नाम से दो आर्टिकल लिखे। इन लेख के शीर्षक थे इंफेंट मैरिज और फोर्सडविडोहुड। रुखमाबाई के इन लेख से हिंदू समुदाय और उनके नेता चकित रह गए थे।

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इसके बाद अपने पति से अलग होकर रुखमाबाई 1888 में इंग्लैंड चली गई। जब भारत अंग्रेजी साम्राज्य का गुलाम था तब उन्होंने डॉक्टर बनने की ठानी और वह पढाई करने के लिए सात समुद्र पार गई थी। वहां डॉक्टर एडिथ ने रुखमाबाई की इसमें मदद की। लंदन स्कूल मेडिसन से रुखमाबाई ने अपनी डॉक्टरी की पढाई पूरी की। वर्ष 1894 में रुखमाबाई वापस भारत लौटी। उन्होंने सूरत, राजकोट और बॉम्बे में 35 साल तक डॉक्टर के रूप में प्रैक्टिस की। 25 सितम्बर 1955 में उनका निधन हो गया।

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