जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह के मन पर छोडी गहरी छाप

www.khaskhabar.com | Published : रविवार, 13 अगस्त 2017, 3:43 PM (IST)

सरदार भगत सिंह ने देश की आजादी के लिए जिस साहस के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का मुकाबला किया, वह आज के युवकों के लिए एक बहुत बड़ा आदर्श है। भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को लायलपुर जिले के बंगा में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। उनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती कौर था।

परिवार पर आर्य समाज व महर्षि दयानंद की विचारधारा का गहरा प्रभाव था। संयोग से भगत सिंह के जन्म दिन पर पिता और दोनों चाचा जेल से छूटे थे। उनकी दादी ने उनका नाम भागो वाला रखा था, जिसका मतलब होता है अच्छे भाग्य वाला। बाद में उन्हें भगत सिंह कहा जाने लगा। वे जब 14 साल के थे तो पंजाब की क्रांतिकारी संस्थाओं में कार्य करने लगे थे। 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह के मन पर गहरी छाप छोड़ी। लाहौर के नेशनल कॉलेज की पढ़ाई छोडक़र भगत सिंह ने नौजवान भारत सभा की स्थापना की थी।

काकोरी कांड में राम प्रसाद बिस्मिल सहित चार क्रांतिकारियों को फांसी व 16 अन्य को जेल की सजा ने भगत सिंह को हिलाकर रख दिया। इसके बाद वे पंडित चन्द्रशेखर आजाद के साथ उनकी पार्टी हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन से जुड गए। भगत सिंह ने राजगुरु के साथ मिलकर 17 दिसंबर 1928 को लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक रहे अंग्रेज अधिकारी जेपी सांडर्स को मार डाला।

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लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर भगत सिंह ने नई दिल्ली स्थित ब्रिटिश भारत की तत्कालीन सेंट्रल एसेम्बली के सभागार संसद भवन में 8 अप्रैल 1929 को अंग्रेज सरकार को भगाने के लिए बम और पर्चे फेंके थे। बम फेंकने के बाद वहीं पर दोनों ने गिरफ्तारी भी दी और उन्हें 116 दिनों की जेल भी हुई थी।

23 मार्च 1931 को भगत सिंह तथा इनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु को फांसी दे दी गई। फांसी से पहले भगत सिंह, लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे। फांसी पर जाते समय तीनों क्रांतिकारी गा रहे थे, मेरा रंग दे बसंती चोला, मेरा रंग दे; मेरा रंग दे बसंती चोला। माय रंग दे बसंती चोला।

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