चंद्रशेखर आजाद से प्रेरणा लेकर स्वतंत्रता आंदोलन में कूदे थे हजारों युवा

www.khaskhabar.com | Published : रविवार, 13 अगस्त 2017, 2:53 PM (IST)

भारत को आजादी दिलाने में कई स्वतंत्रता सेनानियों की महत्वपूर्ण भूमिका रही। इन्हीं में से एक थे पंडित चंद्रशेखर आजाद। उनका जन्म 23 जुलाई 1906 को हुआ था। उनके पिता का नाम सीताराम तिवारी और माका का नाम जगरानी देवी था। उनका शुरुआती जीवन आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में स्थित मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले के भाबरा गांव में बीता। उन्होंने भील बालकों के साथ खूब धनुष-बाण चलाए। युवावस्था की ओर कदम रखने पर उनका मन देश को आजादी दिलाने के अहिंसात्मक उपायों से हटकर सशस्त्र क्रांति की ओर मुड़ गया।

उस समय बनारस क्रांतिकारियों का गढ़ था। वे मन्मथनाथ गुप्त और प्रणवेश चटर्जी के संपर्क में आए और क्रांतिकारी दल के सदस्य बन गए। वे 14 वर्ष की आयु में बनारस गए और वहां एक संस्कृत पाठशाला में पढ़ाई की। वहां उन्होंने कानून भंग आंदोलन में योगदान दिया था। 1920-21 में वे गांधीजी के असहयोग आंदोलन से जुड़े।

वे गिरफ्तार हुए और जज के समक्ष प्रस्तुत किए गए, जहां उन्होंने अपना नाम आजाद, पिता का नाम स्वतंत्रता और जेल को उनका घर बताया। उन्हें 15 कोड़ों की सजा दी गई। हर कोड़ा पडऩे पर उनके मुंह से वंदे मातरम और महात्मा गांधी की जय निकला। इसके बाद वे सार्वजनिक रूप से आजाद कहलाए। जब क्रांतिकारी आंदोलन उग्र हुआ, तब आजाद उस तरफ खिंचे और हिंदुस्तान सोशलिस्ट आर्मी से जुड़े।

ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे

रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में आजाद ने वर्ष 1925 में काकोरी षड्यंत्र में सक्रिय भाग लिया और पुलिस की आंखों में धूल झोंककर फरार हो गए। 17 दिसंबर 1928 को आजाद, भगत सिंह और राजगुरु लाहौर में पुलिस अधीक्षक के दफ्तर को घेर लिया और जैसे ही जेपी सांडर्स बॉडीगार्ड के साथ मोटरसाइकिल पर निकले, तो राजगुरु ने पहली गोली दाग दी जो सांडर्स के माथे पर लग गई। सांडर्स नीचे गिर गया।

फिर भगत सिंह ने उस पर और गोलियां दाग दी। बॉडीगार्ड ने उनका पीछा किया तो आजाद ने उसे भी भुन दिया। इसके बाद लाहौर में जगह-जगह परचे चिपका दिए गए, जिन पर लिखा था- लाला लाजपतराय की मृत्यु का बदला ले लिया गया है। उन्होंने संकल्प किया था कि वे न कभी पकड़े जाएंगे और न ब्रिटिश सरकार उन्हें फांसी दे सकेगी।

इसी संकल्प को पूरा करने के लिए इसी पार्क में 27 फरवरी, 1931 को उन्होंने खुद को गोली मारकर मातृभूमि के लिए प्राणों की आहुति दी। आजाद ने वीरता की नई परिभाषा लिखी थी। उनके बलिदान के बाद उनके द्वारा प्रारंभ किया गया आंदोलन और तेज हो गया। उनसे प्रेरणा लेकर हजारों युवक स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े।

ये भी पढ़ें - 90 की उम्र फिर भी आंख से तिनका निकाल लेते भगत राम