हिमांशु तिवारी,कानपुर। सावन के पवित्र माह में शहर के सभी शिव मंदिरों में सुबह से लेकर देर रात
तक बम-बम भोले की गूंज सुनाई दे रही है। लेकिन भूतेश्वर मंदिर में सबसे
ज्यादा युवक युवतियां शिव की आराधना में दिखते है। जब इसकी जानकारी की गई
तो पता चला कि घर से निकाले जाने के बाद मां सीता ने यहीं पर भगवान शिव की
आराधना की थी। जिससे खुश होकर शिव ने प्रभु राम से मिलवाने का वचन दिया
था।
कल्याणपुर के हसनपुर में सैकड़ों साल पुराना भूतेश्वर मंदिर है,
जहां युवक और युवतियां भगवान के दर पर माथा टेक कर दुल्हन और दूल्हे के लिए
फरियाद लगाते हैं। मान्यता है कि जब भगवान राम ने मां सीता को वनवास
निकारा दिया था, तब वो बिठूर में रूकी थी। प्रभु राम से मिलने के लिए
उन्होंने श्रावण मास के अवसर पर पूरे एक माह यहीं पर पूजा-अर्चना की थी।
भगवान शिव प्रसन्न होकर मां सीता को दर्शन देकर प्रभु राम से मिलवाने का
वचन देकर आर्शीवाद दिया था।
पुजारी संतोष गिरी बताते है कि मां सीता ने घोर तप किया था, तब भूतेश्वर महाराज ने उन्हें दर्शन देकर उनकी मन्नत पूरी
की थी। पूरी कहते हैं, जिन युवक और युवतियों की शादी में व्यवधान आए तो वो
यहां 11 सोमवार को आकर भूतेश्वर के चरणों में जल चढ़ाएं, उनकी शादी में आ
रही रूकावटें अपने आप खत्म हो जाएंगी।
बाल्मीकि ने दी थी सलाह
पुजारी
के मुताबिक मां सीता अपने पुत्र लव और कुश के साथ बिठूर में रहती थीं। तभी
उन्हें बाल्मीकि जी ने सावन के माह पर भूतेश्वर की पूजा करने की सलाह दी।
मां सीता लव-कुश को बिठूर में छोड़कर नाव के जरिए मंदिर पहुंची। पहले गंगा
का जल बिठूर से लेकर मंदिर तक लबालब भरा रहता था। मां सीता ने मंदिर के
पास एक कुटी बनाई और पूरे एक माह तक यहां रूकीं थीं। वो हर दिन भगवान
भूतेश्वर की पूजा-अर्चना करतीं और भगवान राम से मिलन कराए जाने की फरियाद
करतीं। भूतेश्वर महराज मां सीता के तप से प्रसन्न होकर दर्शन दिए और प्रभु
राम से मिलन कराने का आर्शीवाद दिया। कुछ दिन के बाद भगवान राम से मां
सीता का मिलन हुआ। मां सीता जब अयोध्या लौट रहीं थी तो लव और कुश को लेकर
यहां आई थीं।
भूतों ने मंदिर का किया था निर्माण
मंदिर के पुजारी
गिरी की मानें तो वह पिछले कई सालों से इस मंदिर की देखरेख करते आ रहे हैं।
बताया कि अपने पूर्वजों से सुनते आ रहे है कि इस मंदिर का निर्माण भूतों
द्वारा किया गया था, वो भी एक रात में ही। पुजारी ने बताया कि यह भूतेशवर
उस समय सामने आया जब रावतपुर की बघेल महारानी ने अपनी जमीन नपवाई तो उन्हें
एक मंदिर जैसा कुछ दिखाई पड़ा। जिसके चारों तरफ मोखले जैसे खुले हुए थे और
जब वह इसके अंदर दाखिल हुई तो उन्हें एक शिवलिंग दिखाई पड़ा, तब से लोगों
ने इस मंदिर में पूजा अर्चना करनी शुरू कर दी।
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