इन तीन ऋणों से मुक्ति लाएगी जीवन में खुशहाली और सम्पन्नता

www.khaskhabar.com | Published : मंगलवार, 20 जून 2017, 11:30 AM (IST)

पुराणों के अनुसार ऋण दो प्रकार के हैं, एक आध्यात्मिक व दूसरे आर्थिक। आर्थिक ऋण का संबंध तो हमारे इसी जन्म से है, परंतु आध्यात्मिक ऋणों का संबंध हमारे जन्म-जन्मांतरों से है। हमारा यह जीवन पूर्व के कई जन्मों से जुड़ा हुआ है और शृंखलाबद्ध तरीके से हम हमारे इस जीवन व पूर्व जन्मों के कर्म व पुराने ऋणानुबंधनों का परिमार्जन कर रहे हैं।

उपनिषदों में लिखा है कि हम हमारे हृदयस्थल में स्थित ब्रह्म का निरंतर ध्यान करें और अपने पूर्व कर्मों को चुका कर इस जीवन को अनंत ऊंचाइयों पर ले जाएं। इस धरा पर हमारे जन्म के साथ ही तीन ऋणों का भार तो स्वत: ही हमारे जीवन पर आ जाता है। ये हैं मातृ ऋण, पितृ ऋण व देव ऋण, इसीलिए कहा गया है कि मातृ देवो भव, पितृ देवो भव तथा आचार्य देवो भव। ऋणों के बारे में एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि हमारे स्वयं के अलावा पूर्वजों के ऋणों के भार भी पीढ़ी दर पीढ़ी आगे चलता रहता है, जब तक कि उनका मार्जन न हो जाए।

आप पर तीन मूल ऋणों के अलावा और अन्य कोई ऋण भार है या नहीं, इसका पता कुंडली से आसानी से लगाया जा सकता है और हमें उनके मार्जन का भरपूर प्रयास करना चाहिए, ताकि मोक्ष मार्ग की ओर कदम बढ़ाया जा सके।

ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे

1. पितृ ऋण : इस जन्म के अलावा यदि पूर्व जन्मों के पितृ ऋण भी आप पर लंबित हैं, तो इसकी पहचान यह है कि यदि कुंडली के 2, 5, 9 व 12वें भाव में कोई भी गृह हो, तो यह पितृ ऋण का द्योतक है। यदि ये पाप गृह हों, तो इसमें पुराने ऋण भी शामिल हैं। इस ऋण की कुछ प्रमुख स्थितियां हैं, यदि नवम भाव में गुरु शुक्र की युति हो या चतुर्थ स्थान में शनि व केतू की युति हो, अष्टम भाव में बुध व नवम भाव में गुरु हो या तीसरे भाव में बुध व नवम में राहू हो, छठे भाव में बुध हो व नवम भाव में केतू हो, तो ये पितृ ऋण की ओर इशारा कर रहे हैं। इस ऋण के कारण सभी कार्यों में विफलता व देरी से परिणाम मिलते हैं, इसके अलावा जातक के बाल असमय सफेद हो जाते हैं, घर में बरकत नहीं होती, हर कार्य में निराशा हाथ लगती है, सम्मान में कमी होती है व बनते काम अटक जाते हैं।

2. मातृ ऋण : कुंडली में माता का स्थान चतुर्थ भाव से जाना जाता है। इस स्थान में यदि केतू व चंद्रमा की युति हो, राहू व शनि हों, तो यह मातृ ऋण की ओर इशारा है। उक्त दोष प्रमुखतः जातक द्वारा माता को तकलीफ पहुंचाने के कारण होता है। कुंडली में उक्त दोष होने पर जातक की स्थाई संपदा अचानक नष्ट होने लग जाती है, घर में पशुओं को नुकसान होता है, किसी जातक की असमय मृत्यु व विषाद के क्षणों में जातक के मन में आत्महत्या जैसे विचार आने लगते हैं।

ये भी पढ़ें - नाम का अक्षर बदलने से बदल सकता है भाग्य

3. देव ऋण : देव ऋण को स्व ऋण भी कहा जाता है। इसकी पहचान पंचम भाव से की जाती है। यदि पंचम भाव में सूर्य केतू हो या शनि राहू हो, द्वादश भाव में चंद्रमा, शनि, मंगल या राहू अथवा केतू हो, तो स्वयं या देव ऋण से जातक पीड़ित होता है। इस दोष से पीड़ित होने पर जातक अपने जीवन काल में स्वयं अतुल धन संपदा अर्जित करता है, नाम-दाम कमाता है, प्रकृति से नास्तिक होता है, लेकिन अकस्मात ही आपत्तियों का पहाड़ सा जातक पर आता है व सब कुछ समाप्त हो जाता है। जातक शारीरिक व्याधियों का शिकार हो जाता है। इन ऋणों के अलावा अन्य ऋण जैसे अजन्मा ऋण, बहिन का ऋण, प्राकृतिक ऋण आदि भी होते हैं, जिनकी पहचान भी कुंडली से हो जाती है। यदि पूर्व जन्म में मित्रों के साथ धोखा किया हो या ऐसा कोई कार्य किया हो, जिससे उनके वंश पर विपरीत प्रभाव पड़ा हो, तो यह अजन्मा ऋण कहलाता है। इस ऋण के परिणाम स्वरूप जातक पर चोरी, डकैती व बलात्कार आदि संगीन आरोप लगते हैं। निर्दोष होने के बावजूद अपनी बेगुनाही साबित नहीं कर पाते हैं। दुर्भाग्य पीछा नही छोड़ता है। ऐसे जातक की कुंडली के बारहवे भाव में सूर्य चंद्र या मंगल के साथ राहू या केतू की युति होती है।

ये भी पढ़ें - ये 5 काम करने से होती हैं मां लक्ष्मी नाराज

ऋण मुक्ति के उपाय

1. पूर्व जन्म के कारण उत्पन्न होने वाले ऋणों का मार्जन करने के लिए जातक को भगवान विष्णु की आराधना निरंतर करनी चाहिए।
2. अपने आवास पर श्रीमदभागवत पुराण का कुटुंब सहित श्रवण करना चाहिए।
3. पितृ ऋण के शमनार्थ परिवार के सभी व्यक्तियों से राशि एकत्रित कर तीर्थस्थल पर जन सुविधा के लिए निर्माण में योगदान करें या स्वयं कराएं।
4. मातृ ऋण के शमनार्थ मां की सेवा करें या गाय का दान करें।
5. गरीब व्यक्तियों को भोजन कराएं व नारियल बहते जल में प्रवाहित करें।

-पं नन्दकिशोर शर्मा

ये भी पढ़ें - अगर सपने में दिखे ऐसी औरत, तो समझो...