फोरलेन प्रभावितों के पक्ष में खुलकर सामने न आने का खामियाजा भुगतना पड सकता है जनप्रतिनिधियों को

www.khaskhabar.com | Published : मंगलवार, 21 मार्च 2017, 11:55 AM (IST)

मंडी। नेरचौक से मनाली तक बनाए जा रहे फोरलेन की जद में आ रहे ८२ गांवों के लोग दो साल से अपने हक की लडाई हेतु सडक पर हैं मगर सात विधानसभा क्षेत्रों से संबंधित प्रभावितों की इस जंग में कोई भी प्रतिनिधि सीधे सीधे समर्थन में नहीं आया है। परोक्ष अपरोक्ष रूप में प्रभावित होने वाले लोगों की तादाद लाखों में हैं मगर जिस तरह का उदासीन रवैया संबंधित जनप्रतिनिधियों ने अपना रखा है उसका निश्चित रूप से आने वाले चुनावों में उन्हें खामियाजा भुगतना पड़ेगा। चुनावी बिगुल बज चुका है और यदि फोरलेन संघर्ष समिति के तेवरों पर गौर करें तो उसने भी इन जनप्रतिनिधियों को सबक सिखाने का पूरा इंतजाम कर रखा है।

नेरचौक से लेकर मनाली तक बल्ह, मंडी सदर, बंजार, द्रंग, कुल्लू सदर व मनाली तक छह विधानसभा क्षेत्र आ रहे हैं। हैरानी तो यह है कि इसमें सबसे ज्यादा प्रभावित मंडी जिले का द्रंग विधानसभा क्षेत्र है जहां से प्रदेश सरकार में वरिष्ठ व दमदार मंत्री ठाकुर कौल सिंह जिनके पास राजस्व विभाग है जबकि बल्ह से प्रकाश चौधरी मंत्री हैं तो मंडी सदर से अनिल शर्मा केबिनेट में हैं। बंजार से कर्ण सिंह मंत्री हैं। मंत्री होकर भी ये प्रतिनिधि न तो विधानसभा में और न विधानसभा के बाहर ही खुलकर प्रभावितों के पक्ष में आ रहे हैं। प्रभावित दर दर की ठोकरें खा रहे हैं, भूमि अधिग्रहण अधिकारी उनकी बात को सुन नहीं रहे हैं, मनमाने दाम जमीन के तय किए जा रहे हैं, कोई मार्केट रेट नहीं दिया जा रहा है, भूमि अधिग्रहण कानून २०१३ जो केंद्र की कांग्रेस नीत यूपीए सरकार ने ही बनाया है को प्रदेश में कांग्रेस सरकार लागू करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रही है, उल्टा फेक्टर एक लगाकर प्रभावितों को उत्पीडि़त करने का काम किया गया है। आला अधिकारी भी इस उत्पीडऩ में शामिल हैं मगर जनप्रतिनिधियों के मुंह सिले हुए हैं।

कुल्लू सदर से हिलोपा विधायक जो अब भाजपा में हैं जरूर प्रभावितों के पक्ष में बोल रहे हैं मगर बाकी सब चुप हैं। सत्तारूढ़ दल के मंत्री व विधायकों को तो जैसे प्रभावितों से कोई लेना देना ही नहीं है। कोई प्रभावितों के दुख दर्द में शामिल नहीं हो रहा है। जिस तरह की खबरें मिल रही हैं उससे यही लगता है कि प्रभावित भी अब इन जनप्रतिनिधियों को जमीन सुंघाने के लिए कम कस चुके हैं। दलगत राजनीति से उपर उठकर इन जनप्रतिनिधियों को चुनावों में एक जुट होकर आइना दिखाने की रणनीति तैयार हो रही है। चार गुणा मुआवजे की बात तो दूर अब तो दोगुणा मुआवजा भी कहीं नजर नहीं आ रहा है। पुनर्वास, रोजगार आदि देने के जो नियम हैं वह भी धरातल पर नजर नहीं आ रहे हैं। लोग जमीन देने को तैयार हैं मगर उन्हें मुआवजा तो ऐसा मिलना ही चाहिए कि उनकी स्थिति कानून की नीयत के अनुसार पहले से बेहतर होनी चाहिए। अब देखना होगा कि जनता के दरबार में इन जनप्रतिनिधियों की जुवां प्रभावितों के प्रति कितनी खुलती है।

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