लोकतंत्र बचाने की जंग जीतने वाला खुद अपनी जिन्दगी की जंग हार गया

www.khaskhabar.com | Published : मंगलवार, 21 मार्च 2017, 11:51 AM (IST)

सुल्तानपुर । डा0 जितेन्द्र अग्रवाल ने देश के लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई तो जीत ली लेकिन अपनी जिन्दगी की लड़ाई वह हार गये । आज सुबह लम्बी बीमारी से लड़ते हुये लोकतंत्र के इस प्रहरी की जीवन लीला समाप्त हो गई । जितेन्द्र अग्रवाल के मौत की खबर पर पूरे जिले में शोक का माहौल है ।
नगर के चौक इलाके में रहने वाले डा जितेन्द्र अग्रवाल ने एमबीबीएस की डिग्री हासिल की थी ।शिक्षा के दौरान ही राजनीति में सक्रिय रहे जितेन्द्र ने जनसंघ ज्वाइन किया ।

वर्ष 1957,1962 और फिर 1969 का लोकसभा चुनाव लड़े लेकिन कामयाब नहीं हो सके । वर्ष 1974 में विधानसभा के चुनाव में पहली बार जनसंघ से विधायक बने । अग्रवाल की सक्रियता देख जनसंघ से उन्हे सूबे में प्रदेश उपाध्यक्ष भी बनाया गया । साल 75 में इमरजेंसी के दौरान उन्होंने इसका कड़ा विरोध किया ।एक साक्षात्कार के दौरान उन्होने बताया था कि यह एक न भूलने वाली त्रासदी थी । लोगों कीआजादी छीन ली गई थी । तानाशाही रवैया था । इसमें न कोई दलील न सुनवाई सीधे जेल भेज दिया जाता था । लोगों को घरों से पकडकर उनकी नसबंदी की जा रही थी लिहाजा डर और दहशत के चलते तमाम लोग खेतों में छुपकर दिन बिता रहे थे । जिसने भी इस मीसा और डीआईआर जैसे काले कानून के खिलाफ आवाज उठाई उसे जेल में ठूंस दिया गया । ऐसे में जितेन्द्र अग्रवाल ने भी इस काले कानून के खिलाफ बिगुल फूंक दिया । गिरफ्तारी की भनक लगी तो लखनऊ चले गये लेकिन समाज का दर्द समझा तो वापस आकर फिर से इसके खिलाफ आवाज बुलन्द की । पुलिस ने इनके मकान को घेर लिया लेकिन किसी तरह छुपते-छुपाते यह रेल पटरी किनारे से होते हुये बढैयाबीर की तरफ से कलेक्ट्रेट पहुंचे जहां कांग्रेस और इन्दिरा गांधी के खिलाफ नारेबाजी करते हुये गिरफ्तार होगये । इन्हें सीधे जिला कारागार भेज दिया गया । जेल में सत्याग्रही त्रिभुवन नाथ संडा और जितेन्द्रअग्रवाल एक ही बैरक में रहे ।निजाम बदला तो जनता पार्टी से इन्होने चुनाव लड़ा और एक बार फिर विधायक बने ।
निजाम बदला तो जनता पार्टी से इन्होंने चुनाव लड़ा और 1977 में जनता पार्टी से एक बार फिरसुलतानपुर से विधायक बने । पिछले कुछ वर्षों से खराब स्वास्थ्य के चलते राजनीति से दूरी बन गई थी लेकिन देश दुनिया में होने वाली गतिविधियों पर वह जब-तब अपनी राय जरूर दिया करते थे ।

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