ट्रैप्ड : अकेला चना भाड नहीं फोड सकता, राव का दमदार अभिनय

www.khaskhabar.com | Published : शुक्रवार, 17 मार्च 2017, 5:21 PM (IST)

फिल्म समीक्षा
इस सप्ताह बॉक्स ऑफिस पर 7 फिल्मों का प्रदर्शन हुआ है। जिनमें सबसे बुरी गत राजकुमार राव अभिनीत ट्रैप्ड की है। इस फिल्म को न के बराबर दर्शक मिले हैं। क्योंकर इस तरह की फिल्में बनाई और पैसा बर्बाद किया जाता है यह समझ से परे है। हालांकि फिल्म अच्छी है लेकिन इन फिल्मों को देखने के लिए दर्शक सिनेमाघरों की तरफ रुख नहीं करता है।
फिल्म की सबसे खास बात राजकुमार राव की अदाकारी है। राजकुमार राव ने इस रोल को निभाने के लिए काफी लंबे समय तक मेहनत की थी और फिल्म को देखने के बाद लगता है कि वो मेहनत रंग लायी है। राजकुमार की अदाकारी की तारीफ में यही बोला जा सकता है कि उन्होंने फिल्म के स्तर को बढा दिया है। इसके अलावा फिल्म के नरेशन की तारीफ भी बनती है क्योंकि सिर्फ एक अपार्टमेंट में फंसे इंसान की कहानी को निर्देशक विक्रमादित्य ने इस तरह से पेश किया है कि वो आपको बोर नहीं करती है। आप शुरूआत से लेकर अंत तक थियेटर की सीट से हिलने का नाम नहीं लेते हैं। इसके अलावा फिल्म के सीन्स में आपको कई मैसेज मिलते रहेंगे, जो कि कहानी को प्रभावित न करते हुए आपको सोचने पर मजबूर करेंगे।

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फिल्म की नकारात्मक बातों की ओर गौर किया जाए तो बहुत ज्यादा चीजें हमें नहीं मिलती हैं लेकिन जो बाते थोड़ी सी खटकी वो यह कि ऐसा कैसे संभव हो सकता है कि जिस बिल्डिंग में शौर्य रहने का फैसला करता है, वहां पूरी बिल्डिंग में एक भी इंसान नहीं रहता है। जो लाइट और पानी एक बार चला गया हो तो वो दोबारा कभी लौट कर ही न आयें। इस तरह की कई चीजें हैं जो आपको सोचने पर मजबूर करती हैं कि इतनी सारी खराब बातें एक साथ शौर्य के साथ कैसे हो सकती हैं? इनके अलावा फिल्म में कैमरापर्सन के लिए अपना जौहर दिखाने का काफी समय था लेकिन वो भी बहुत ही सामान्य सा ही देखने को मिलता है। अगर फिल्म के मेकर्स चाहते तो कैमरा वर्क और भी कमाल का हो सकता था। इसके अलावा जब फिल्म बीच में पहुंचती है तो खिंची सी लगती है।

अगर उन्हें एडिट कर दिया जाता तो फिल्म का रोमांच और भी बढ सकता था। कमियों और खूबियों को छोडकर सबसे बडी बात यह है कि यह ऐसी फिल्म है जिसमें इंटरवल नहीं किया गया है। दर्शक पहले दृश्य से लेकर आखिरी दृश्य तक सीट पर बैठा रहता है। लगभग डेढ घंटे की फिल्म दर्शक को एक बार में ही देखनी पडती है। यह प्रयोग अच्छा है। समय की बचत होती है। हो सकता है आगे और निर्देशक भी इसी तरह का प्रयोग करें।