शिवरूपों को जानने और पढने से ही पूरे होते हैं सभी अधूरे काम

www.khaskhabar.com | Published : शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2017, 4:25 PM (IST)

महादेव के असंख्य रूप हैं। सीधे-साधे भोलेनाथ से लेकर उग्र कालभैरव तक, सुंदर सोमसुंदर से ले कर भयानक अघोरशिव तक, वे सारी संभावनाओं को अपने भीतर समेटे हुए हैं। इनके पांच ऐसे बुनियादी रूप हैं, जिनके बारे में हर हिंदू को जानना चाहिए। इनके बारे में जानने और पढने से ही सभी अधूरे काम पूरे होने लगते हैं।

योग योग योगेश्वराय
भूत भूत भूतेश्वराय
काल काल कालेश्वराय
शिव शिव सर्वेश्वराय
शंभो शंभो महादेवाय

योगेश्वर
योग के पथ पर होने का अर्थ है कि आप अपने जीवन में एक ऐसे चरण पर आ गए हैं जहां आपने अपने भौतिक शरीर की सीमाओं को जान लिया है। आपने भौतिक सीमाओं से परे जाने की आवश्यकता को महसूस किया है – आप स्वयं को इस असीम ब्रह्माण्ड में भी बंधा हुआ पा रहे हैं। आप यह देखने योग्य हो गए हैं कि अगर आप छोटी सीमा में बंध सकते हैं, तो आप कहीं न कहीं विशाल सीमा में भी बंध सकते हैं। आपको ये बात समझने के लिए ब्रह्माण्ड के एक सिरे से दूसरे सिरे तक जाने की ज़रूरत नहीं है। यहीं बैठे आप जानते हैं कि अगर यह सीमा आपके लिए बाधा बन रही है तो विशाल ब्रह्माण्ड भी कभी आपके लिए बाधा बन जाएगा – दूरियां लांघने की क्षमता आने से ये आपके अनुभव में आ जाएगा।

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एक बार आपकी दूरियां लांघने की क्षमता बढ़ेगी, तो आपके लिए किसी भी तरह की सीमा बाधा बन जाएगी। जब आप इसे एक बार जान और समझ लेंगे, जब आप उस तड़प को जान लेंगे, जिसे भौतिक रूप से पूरा नहीं किया जा सकता – तो आप योग की खोज करना शुरू करते हैं। योग का अर्थ है भौतिक सीमाओं के बंधनों से आजाद होना। आपका प्रयास केवल भौतिकता पर महारत जासिल करना नहीं, पर इसकी सीमा को तोड़ते हुए, ऐसे आयाम को छूना है, जो भौतिक प्रकृति नहीं रखता। आप ऐसी दो चीज़ों को जोड़ना चाहते हैं – जिनमें एक सीमा में कैद तथा दूसरी असीम है। आप सीमाओं को अस्तित्व की असीम प्रकृति में विलीन करना चाहते हैं, इसलिए, योगेश्वराय।

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भूतेश्वर-
यह सारी भौतिक सृष्टि – जिसे हम देख, सुन, सूंघ, छू व चख सकते हैं – यह देह, यह ग्रह, ब्रह्माण्ड, सब कुछ – यह सब कुछ पंच तत्वों का ही खेल है। केवल पंच तत्वों की मदद से कैसी अद्भुत शरारत – ये ‘सृष्टि’ रच दी गई है! केवल पंच तत्व, जिन्हें आप एक हाथ की अंगुलियों से गिन सकते हैं, इसने कितनी चीज़ें तैयार की गई हैं। सृजन इससे अधिक करुणामयी नहीं हो सकता। अगर ये कहीं पचास लाख तत्व होते तो आप कहीं खो कर रह जाते। पंच भूतों के रूप में जाने गए, इन तत्वों को साधना ही सब कुछ है – आपकी सेहत, आपका कल्याण, इस जगत में आपका बल और अपनी इच्छा से कुछ रचने की योग्यता।

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जाने-अनजाने, चेतन या अचेतन तौर पर, व्यक्ति किसी हद तक इन विभिन्न आयामों को साध लेते हैं। वे कितना नियंत्रण रखते हैं, उसी से उनकी देह, मन और उनके द्वारा होने वाले कामों और उनकी सफलता की प्रकृति सुनिश्चित होती है – या उनकी दृष्टि या समझ कहां तक जा सकती है आदि तय होता है। भूत भूत भूतेश्वराय का अर्थ है कि जो भी जीवन के पंच भूतों को साध लेता है, वह कम से कम भौतिक जगत में, अपने जीवन की नियति या भाग्य को तय कर सकता है। कालेश्वतर काल – समय। भले ही आपने पांचों तत्त्वों को अपने बस में कर लिया हो, इस असीम के साथ एकाकार हो गए हों या आपने विलय को जान लिया हो – जब तक आप यहां हैं, समय चलता जा रहा है। समय को साधना, एक बिलकुल ही अलग आयाम है। काल का अर्थ केवल समय नहीं, इसका एक अर्थ अंधकार भी है। समय अंधकार है। समय प्रकाश नहीं हो सकता क्योंकि प्रकाश समय में एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक जाता है। प्रकाश समय का दास है। प्रकाश एक ऐसा तत्व है, जिसका एक आदि और अंत है। समय वैसा तत्व नहीं है।

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शिव-सर्वेश्वर-शंभो
शिव का अर्थ है, ‘जो है ही नहीं, जो विलीन हो गया।’ जो है ही नहीं, हर चीज़ का आधार नहीं, और वही असीम सर्वेश्वर है। शंभो केवल एक मार्ग और एक कुंजी है। अगर आप इसे एक ख़ास तरह से उच्चारित कर सकें, कि आपका शरीर टूट उठे, तो ये एक मार्ग बन जाएगा। अगर आप इन सभी पहलुओं को साधते हुए वहां तक जाना चाहते हैं तो इसमें लंबा समय लगेगा। अगर आप केवल इस रास्ते पर चलना चाहते हैं – तो आप इन पहलुओं से कौशल से नहीं, बल्कि चुपके से भीतर घुस कर परे निकल जाते हैं।

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अगर आप सीधा चलना चाहते हैं, तो यह एक कठिन मार्ग है – ढेर सारा काम। अगर आप केवल घुटनों के बल चलना चाहते हैं तो इसके लिए कई आसान उपाय हैं। जो लोग घुटनों के बल चलना पसंद करते हैं, उन्हें किसी भी चीज़ को साधने की चिंता नहीं करनी पडती। जब तक जीवन चलता है, जीएँ। जब आप मरेंगे, तो उस परम को पा लेंगे। किसी भी सरल सी चीज़ का हुनर साधने में भी अपनी ही एक सुदंरता है – एक सौंदर्य बोध का एहसास है। मिसाल के लिए, एक फुटबॉल को किक मारना। यहाँ तक कि एक बालक भी ऐसा कर सकता है। पर जब कोई उसे साध लेता है, तो अचानक उसमें एक सौंदर्य बोध आ जाता है। आधी दुनिया उसे बैठ कर देखती है। अगर आप कौशल को जानना और आनंद लेना चाहते हैं, तो आपको काम करना होगा। पर अगर आप घुटनों के बल चलने के लिए तैयार हैं, तो केवल शंभो की जरूरत है।

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