5 लाख कामगारों पर नोटबंदी की मार, फैक्ट्रियों में मशीनें शांत

www.khaskhabar.com | Published : बुधवार, 30 नवम्बर 2016, 08:11 AM (IST)

जयपुर। नोटबंदी के बाद बैंकों से पर्याप्त कैश नहीं मिल पाने से इंडस्ट्री की भी मानो कमर टूट गई है। ज्यादातर इंडस्ट्रियल एरिया की फैक्ट्रियों में मशीनें ठप पड़ गई हैं। काम का लेन-देन भी रुक गया है। जहां हजारों मजदूरों की चहल-पहल रहती थी, वहां गिने-चुने लोग बेहद जरूरी ‘ऑर्डर’ वाले काम निकालने आ रहे हैं। शहर के सांगानेर, विश्वकर्मा, झोटवाड़ा, मालवीय नगर, बिंदायका, बगरू, सरना डूंगर सहित अन्य जगहों पर लगी इंडस्ट्रियों के यही हाल हैं। वजह है यहां हर दिन लाखों रुपए का लेन-देन या ऑर्डर पर काम होता है। अव्वल तो उसमें ही दोनों पक्षों ने हाथ खींच रखे हैं क्योंकि, इतने बड़े लेन-देन के लिए नया कैश नहीं है। वहीं ज्यादातर जगह पुरानी उधारी को कैसे निपटाया जाए, इस पर ही जद्दोजहद चल रही है। रही-सही कसर दिहाड़ी मजदूरों को देने के लिए पैसे की व्यवस्था नहीं होना है। ऐसे में कई फैक्ट्री मालिकों ने उनको छुट्टियां दे दी हैं। अकेले सांगानेर एरिया में कपड़ा-टेक्सटाइल में जुटे करीब 2 लाख श्रमिकों में से करीब 80 प्रतिशत छुट्टी पर हैं। नतीजतन ज्यादातर इंडस्ट्रीज खुल तो रही है, लेकिन मशीनों के चक्के जाम हैं। यही हाल सबसे बड़े इंडस्ट्रीज वाले वीकेआई एरिया के हैं। जहां 8 नवंबर को नोटबंदी के बाद कुछ दिन तो मजदूरों का आना-जाना रहा। सांगानेर की एक कपड़ा फैक्ट्री में काम करने वाले सुरेश वर्मा ने कहा कि सेठजी ने छुट्टी कर रखी है। क्योंकि उनके पास आने वाला काम कम हो गया है। अब जितने दिन उनकी मर्जी से छुट्टी पर रहेंगे, उतने दिन की पगार भी नहीं। ऐसे में घर बैठे हैं। कैलाश के एक साथी घनश्याम ने कहा कि कुछ दिन तो मालिक ने लाइनों में कैश के लिए भेजा, एक दिन नंबर ही नहीं आया तो खीज उतारी।

व्यापारियों ने मांगी रियायतें मांगी

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व्यापारियों ने मांग की है कि कैश निकालने की अतिरिक्त व्यवस्था की जाए। घरेलू की तरह इंडस्ट्रीज के बिजली के बिल जमा कराने में पुराने ड्यूज, पुराने नोटों में स्वीकार करने की छूट मिले। साथ ही ईएमआई जमा कराने में कुछ महीने का एक्सटेंशन दें। विश्वकर्मा और राजस्थान ट्रांसफार्मर एंड रीक्रिएशन एसोसिएशन के अध्यक्ष ताराचंद चौधरी ने कहा कि नोटबंदी से काम प्रभावित हो रहा है। आधे मजदूर आ रहे हैं। सरकार को छूट देनी चाहिए। सांगानेर कपड़ा-टेक्सटाइल के अध्यक्ष राजेन्द्र जिंदगर ने कहा कि सांगानेर की करीब 800 फैक्ट्रियों में करीब 2 लाख लोग काम करते हैं। इनमें से बमुश्किल 15-20 हजार मजदूर ही काम पर आ पा रहे हैं। वजह है ज्यादातर को देने के लिए न तो पैसा है और वहीं उनको भी बैंक अकाउंट जैसी औपचारिकताएं पूरी करनी हैं। आगे से माल खरीदने के लिए भी नया कैश चाहिए, जिसकी व्यवस्था भी करनी है। वहीं वीकेआई एसोसिएशन के अध्यक्ष जगदीश सोमानी ने कहा कि विश्वकर्मा और आसपास के एरिया में 5 हजार यूनिट है, जिनमें से 2 हजार रजिस्टर्ड हैं। आधी यूनिट लगभग बंद हैं क्योंकि, लेबर को देने के लिए पैसे नहीं हैं। माहौल को देखते हुए काम पटरी पर आने में 2 महीने लगेंगे। 8 लाख में से आधे से ज्यादा मजदूर नहीं आ रहे या काम नहीं होने से परेशान हो रहे हैं। ऐसे में हम सरकार से मांग करते हैं कि वो हमको बिजली के बिल पुराने नोट में जमा कराने की छूट दे, साथ ही लोन किस्तों में एक्सटेंशन दे।
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