उदयपुर। साहित्य मनुष्य को संवेदनशील बनाने के साथ-साथ उसे स्वस्थ समाज के निर्माण के लिए प्रेरित भी करता है, जो कि आधुनिक विज्ञान की सहूलियतें नहीं करतीं। आज का युवा तकनीकी प्रसार की वजह से आभासी दुनिया में जी रहा है। यह बात प्रो. नवल किशोर शर्मा ने जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग द्वारा बनास जन पत्रिका के अंक संवाद नवल किशोर तथा फिर से मीरा चर्चा कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि कही।
विशिष्ट अतिथि आलोचक व वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. सत्यनारायण व्यास ने कहा
कि प्रो. नवल किशोर मानव समाज के प्रति प्रतिबद्ध हैं, उन्होंने कहा कि
प्रगतिशील होने के लिए कम्युनिष्ट होना आवश्यक नहीं है।
साहित्य की अपनी स्वायत्ता है, जो समाज सापेक्ष है। वरिष्ठ साहित्यकार तथा सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. माधव हाड़ा ने कहा कि सातवां व आठवां दशक विचारधारा के कोलाहल का समय था। उन्होंने मीरा को नए रूप में समझने की बात करते हुए कहा कि मनुष्य को हमें समग्रता से समझना चाहिए।