चलते है विवाद की शुरुआत में, 2 जून को समाजवादी पार्टी और क़ौमी एकता दल का विलय हुआ। क़ौमी एकता दल के माफ़िया नेता मुख्तार अंसारी की आपराधिक छवि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की साफ़ छवि पर बड़े सवाल खड़े कर रही थी। अखिलेश यादव की अनुपस्थिति में लिए गए इस विलय के फ़ैसले का उन्होंने जमकर विरोध करते हुए पार्टी के वरिष्ठ नेता बलराम यादव को पार्टी से बाहर निकाल दिया। अखिलेश यादव की माँगों के सामने झुकते हुए समाजवादी पार्टी ने 25 जून को क़ौमी एकता दल के साथ विलह तोड़ने कीघोषणा कर दी ।पार्टी के इस क़दम का विपक्ष ने जम कर विरोध किया और कहा की यह सब `फ़ैमिली ड्रामा` सिर्फ़ अखिलेश की छवि को अच्छा दिखने के लिए किया जा रहा है। ये सब देखते मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बलराम यादव को वापस कैबिनेट मंत्री का पद वापस दे दिया।
14 अगस्त को शिवपाल यादव ने बड़े पैमाने पर चल रहे भ्रष्टाचार व समाजवादी नेताओ द्वारा ज़मीन हथियाने की घटनाओं की वजह से इस्तीफ़ा देने की धमकी दी। अगले दिन ही मुलायम सिंह ने इशारे इशारे में ही पुत्र को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर शिवपाल ने इस्तीफ़ा दे दिया तो पार्टी टूट जाएगी। 17 अगस्त को शिवपाल यादव ने कैबिनेट मीटिंग में शिरकत नहीं की। मीडिया मे ख़बर फैलने के बाद, 19 अगस्त को पार्टी में एकता तब दिखाई दी जब चाचा शिवपाल ने भतीजे अखिलेश की प्रशंसा करते हुए कहा की 2017 में अखिलेश ही मुख्यमंत्री होंगे। 12 सितम्बर को इलाहबाद हाईकोर्ट के निर्देशो के बाद अखिलेश यादव ने भ्रष्टाचार के आरोपो से लैज मंत्री गायत्री प्रजापति और राजकिशोर सिंह को बर्खास्त कर दिया।
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